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Showing posts from January, 2018

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 आप हिम्मत का एक कदम बढाओं तो परमात्मा की सम्पूर्ण मदद आपके साथ होगी !

संबंधो में रमणीकता

संबंधो में रमणीकता सम्बन्ध जीवन जीने के लिए निहायत जरुरी है | संबंधो को सजीव, सार्थक और मधुर बनाये रखना जीवन की अनिवार्यता है | यदि परस्पर सम्बन्धो   में नीरसता हो, कड़वाहट और रुक्षता हो, एक ऊष्मा, उत्साह और ख़ुशी का अनुभव न हो, तो सम्बन्ध जड़वत रह जाते है | एक दुसरे को कोई प्रेरणा या कोई ऊर्जा मिल नहीं पाती | इसलिए यह जरुरी है कि आपसी संबंधो में शालीनता के साथ-साथ रमणीकता का पुट हो | रमणीकता संबंधो को सरस और सुखदायी बनाती है | रमणीकता का अर्थ सिर्फ हास्य और विनोद नहीं है, बल्कि रमणीकता का अर्थ आपसी व्यवहार की सुन्दरता, सरसता और मधुरता भी है |कोई भी बात खड़ी भाषा में कहने की अपेक्षा यदि रमणीकतासे उसका प्रस्तुतिकरण किया जाए, तो वह अधिक ग्राह और प्रभावशाली होती है |राम्निकता व्यक्ति गंभीर और बड़ी से बड़ी बात भी बड़ी सादगी और सरलता से कह सकता है | यदि दूसरों की त्रुटियाँ भी रमणीक अंदाज में बताई जाती है, तो सम्मुख व्यक्ति उसका बुरा नहीं मानता, बल्कि उसका ध्यान अपनी गलतियों पर सहज ही चला जाता है | मर्यादा और संयम रुपी अंकुश भी जरुरी संबंधो में रमणीकता का अर्थ यह नहीं है कि हम स...

प्रभु से रिश्ता, बनाएगा फ़रिश्ता

इस द्रश्य जगत में मनुष्यों का वस्तु और व्यक्तियों से कुछ न कुछ जुड़ाव अथवा रिश्ता बन ही जाता है | देह आत्मा को सबसे पहले बांधने वाली और खीचने वाली है | निज शरीर से रिश्ता मृत्यु तक नहीं छूट पाटा, इसी प्रकार से देह के संबंधो की लम्बी सूची है, देह संबंधो के ये रिश्ते अथवा नाते ममत्व अथवा मोह के बंधन में परस्पर लगाव और आकर्षण में बांधने वाले है | मनुष्य संसार में जीवनयापन के लिए अनेकानेक साधनों को अपनाता है और इन साधनों से भी उसका लगाव व् मोह हो जाता है | पद,पैसा,मान-शान,जीव-जंतु इनमे भी कही न कही मन की रगे जुडी रहती है | दुनिया के रिश्ते जितनी सहजता से बनते है, वे बनकर मिटते नहीं है | देह व् देह के संबंधो में कदम-कदम पर अपेक्षा और निहित स्वार्थ जुड़े रहते है | इस प्रकार देह और देह के पदार्थो के रिश्ते व्यक्ति को इस भौतिक जगत से न्यारा और उपराम होने नहीं देते, उसका मन और बुद्धि बार-बार विनाशी व्यक्ति और वस्तु में उलझते रहते है | इसलिए एक सांसारिक व्यक्ति के लिए फ़रिश्ता बनना बहुत असंभव कार्य है |              ...

वरदान देने आये शिव भगवान्

    अमरता का देने वरदान, आये शिव भगवान परमात्मा शिव स्वयंभू विश्व कल्याणकर्ता, दिव्य चक्षु विधाता और गीता ज्ञानदाता है | उनके अनेक नामो में एक नाम अमरनाथ भी है, जिसका भाव यह है कि परमात्मा शिव मानव आत्माओं को अमरत्व का वरदान देते है और वरदान देने के लिए परमात्मा को धरा पर अवतरित होना पड़ता है |                          निराकार ने लिया साकार का आधार शिव परमात्मा को एक ओमकार,निराकार,अजन्मा,अभोक्ता अयोनि और अशरीरी भी कहा जाता है | कारण कि उनका कोई निज शरीर नहीं है, वे अति सूक्ष्म ज्योतिर्बिंदु व् निराकार है | परंतू जगत कल्याण के लिए धर्मग्लानि के समय निराकार शिव को धरा पर अवतरित होना पड़ता है |   अतः इसके लिए वे साकार ब्रह्मा के वृद्ध तन का आधार लेते है और ब्रह्मा मुख से वे सत्य गीता ज्ञान अथवा अमरकथा सुनाते है |                                ...

मै कहाँ खो गया हूँ.............?

जब हम किसी भी प्रोफेशनल या आम व्यक्ति से बात करते है तो वो अपनी समस्याओं के बारे में, परिस्थतियों के बारे में और कठिनाइयों की ही बात करता है | वो अपनी सूझ-बूझ, अपने परसेप्शन और मान्यताओं के आधार से उसके हल भी ढूँढने की कोशिश करता है, परन्तु वो अपनी उन कठिनाइयों को दूर करने के चक्कर में और ही उलझता जाता है | वो अपनी आकांक्षाओं,इच्छाओं व् सामाजिक,पारिवारिक दायित्व के निर्वहन हेतु कई शार्ट कट का रास्ता भी अपनाने की कोशिश करता है | परिणामस्वरूप वो अपनी उलझनों के भंवर में और ही उलझता हुआ अपने को पाटा है | उदाहरण स्वरुप,किसी व्यक्ति के घर में चूहे बहुत थे और खाघ पदार्थ को नुक्सान पहुंचाते थे | तो किसी ने कहा कि ऐसा करो, एक बिल्ली को पाल लो, जिससे आपकी समस्या हल हो जायेगी | वो बिल्ली ले आया, बिल्ली चूहे को तो खा जाती , लेकिन साथ ही उसका रखा हुआ दूध भी पि जाती | वो फिर परेशान होने लगा | फिर किसी और ने सलाह दी कि ऐसा करो की कुत्ता पाल लो | कुत्ते के कारण तो बिल्ली भाग गयी, लेकिन कुत्ता सारा दिन भौं-भौं करके उसका सर दर्द कर देता था | आज वैसी ही हालत हम सबकी है | हम ढूंढनातो चाहते है हल...

Labeles

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