इस द्रश्य जगत में मनुष्यों का वस्तु और व्यक्तियों से कुछ न कुछ
जुड़ाव अथवा रिश्ता बन ही जाता है | देह आत्मा को सबसे पहले बांधने वाली और खीचने
वाली है | निज शरीर से रिश्ता मृत्यु तक नहीं छूट पाटा, इसी प्रकार से देह के
संबंधो की लम्बी सूची है, देह संबंधो के ये रिश्ते अथवा नाते ममत्व अथवा मोह के
बंधन में परस्पर लगाव और आकर्षण में बांधने वाले है | मनुष्य संसार में जीवनयापन
के लिए अनेकानेक साधनों को अपनाता है और इन साधनों से भी उसका लगाव व् मोह हो जाता
है | पद,पैसा,मान-शान,जीव-जंतु इनमे भी कही न कही मन की रगे जुडी रहती है | दुनिया
के रिश्ते जितनी सहजता से बनते है, वे बनकर मिटते नहीं है | देह व् देह के संबंधो
में कदम-कदम पर अपेक्षा और निहित स्वार्थ जुड़े रहते है | इस प्रकार देह और देह के
पदार्थो के रिश्ते व्यक्ति को इस भौतिक जगत से न्यारा और उपराम होने नहीं देते, उसका
मन और बुद्धि बार-बार विनाशी व्यक्ति और वस्तु में उलझते रहते है | इसलिए एक
सांसारिक व्यक्ति के लिए फ़रिश्ता बनना बहुत असंभव कार्य है |
फ़रिश्ता स्थिति क्या है ?
फ़रिश्ते का अर्थ ही है, जिसका फर्श अर्थात धरा के व्यक्तियों और
वस्तुओं से कोई रिश्ता न हो, जो फर्श अर्थात धरती पर संसारी जीवन जीते हुए
भी,अर्शवासीन्यारा और प्यारा हो, निरासक्त और निर्मोही हो | अतः फ़रिश्ता वह है ,
जो देह में रहते हुए भी देहातीत और कर्मातीत है | फैढ़स्ता दादा हल्का, उपराम, कर्म
करते भी कर्मफल से न्यारा, संबंधो को निभाते हुए भी, एक न्यासी की तरह रहते वाला
और वस्तुओं का उपयोग करते हुए भी निरासक्त और निर्लिप्त होता है | मनुष्य का शरीर
पाकर और इस भौतिक जगत में लोक कर्म करते हुए, साधन-सुविधाओं का उपभोग करते हुए उन
सबको लगाव से मुक्त होना, न्यासी,साक्षी और द्रष्टा बनकर रहना,किसी भी पुरुषार्थी के
लिए इतना आसान कार्य नहीं है |
परमात्म संग से फ़रिश्ता स्थिति-
जीवन-व्यव्हार में अनुभव होता है कि जहाँ एक ओर देह के सम्बन्ध हदों
में बाँधने वाले, फर्शवासी बनाने वाले है, फिक्रमंद बनाने वाले है, मोह और आसक्ति
को बढ़ने वाले है, वही सीके विपरीत पवित्रता के सागर,स्नेह के सागर, निराकार ज्योति
स्वरुप परमात्मा शिव का सान्निध्य समस्त द्रश्य जगत से देह और देह के संबंधो से
न्यारा बनाने वाला कर्म में निमित्त भाव और व्यव्हार में निरासक्त वृत्ति बनाने
वाला है | जो आत्मा प्रभु संग के रंग में रंग जाती है, प्रभु स्नेह की डोर में बंध
जाती है, उसे यह विनाशी दुनिया और दुनिया के देह सम्बन्ध रास ही नहीं आते, वह
बुद्धि से उपराम हो जाती हो और उसका मन परमात्मा में ही लगा रहता है | इसलिए ऐसी
आत्मा फर्श पर रहते हुए अर्शवासी बन जाती है |
फ़रिश्ता अर्थात डबल लाइट-
फ़रिश्ता बन्ने वाली आत्माएं सदा पवित्रता की पोशाक पहने हुए, लाइट
अर्थात् हल्की और उपराम होती है | दूसरा वे पवित्रता के दिव्य प्रकाश से सदा
प्रकाशित होती है | डबल लाइट वही बन सकता है, जिसका बुद्धियोग सदा पवित्रता के
सागर लाइट हॉउस परमात्मा से जुटा रहता है | लाइट हॉउस की लाइट और माइटयोगी आत्माओं
को विकारो और बुराइयों के व्यर्थ कीचड़े अथवा बोझ से मुक्त कर देती है अर्थात ऐसी
आत्मा फ़रिश्ता बनकर उन्मुक्त गगन में उड़ती है | विषय-विकारी दुनिया की धूल भी उसे
स्पर्श नहीं कर पाती | फ़रिश्ते राग द्वेष से परे देवदूत की तरह होते है | वे कभी
किसी को आहत नहीं करते, किसी को क्षति नहीं पहुंचाते,बल्कि दूसरो को सहारा व्
अवलंबन ही प्रदान करते है | देवत्व को प्राप्त करने से पूर्व हर ब्रह्मामुख
वंशावली ब्राह्मण को चलता-फिरता दिव्य फ़रिश्ता बनना ही है | तो आइये विनाशी
रिश्तों से परे दिव्य फ़रिश्ते बने |
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