जाड़े का दिन था और शाम होने आयी | आसमान में बादल आये थे | एक नीम के पेड़ पर बहुत से कौए बैठे थे | वे सब बार-बार काँव-काँव कर रहे थे और एक दूसरे से झगड़ भी रहे थे | उसी समय एक मैना आयी और उसी पेड़ की एक दाल पर बैठ गयी | मैना को देखते ही कई कौए उस पर टूट पड़े | बेचारी मैना ने कहा – बादल बहुत है इसलिए आज अँधेरा हो गया है | मै अपना घोंसला भूल गयी हूँ इसलिए आज रात मुझे यहाँ बैठने दो | कौआ – नहीं यह पेड़ हमारा है, तू यहाँ से भाग जा | मैना बोली पेड़ तो ईश्वर ने बनाये हुए है | इस सर्दी में यदि वर्षा पड़ी और ओले पड़े तो ईश्वर ही हमें बचा सकते है | मै तुम्हारी छोटी बहन हूँ, तुम लोग मुझ एक पर दया करो और मुझे भी यहाँ बैठने दो |
कौओं ने कहा हमें तेरे जैसी बहन नहीं चाहिए | तू बहुत ईश्वर का नाम लेती है तो ईश्वर के भरोसे यहाँ से चली क्यों नहीं जाती | तू नहीं जायेगी तो हम सब तुझे मारेंगे | कौए तो झगड़ालू होते ही है, वे शाम को जब पेड़ पर बैठने लगते है तो उनसे आपस में झगड़ा किये बिना नहीं रहा जाता | वे एक-दूसरे को मारते है और काँव-काँव करके झगड़ते रहते है | कौन-कौन किस टहनी पर रात को बैठेगा | यह कोई झटपट तय नहीं हो जाता | उसमे बार-बार लड़ाई होती है, फिर किसी दूसरी चिड़िया को वह पेड़ पर कैसे बैठने दे सकते है | आपसी लड़ाई छोड़कर मैना को मारने दौड़े | कौओं को काँव-काँव करके अपनी ओर झपटते देखकर बेचारी ऐना वही से उड़ गयी और थोड़ी दूर जाकर एक आम के पेड़ पर बैठ गयी |
रात को आंधी आयी, बादल गरजे और बड़े-बड़े ओले बरसने लगे | बड़े आलू जैसे ओले तड़-भड़ बंदूक की गोली जैसे गिर रहे थे | कौए काँव-काँव करके चिल्लाये | इधर से उधर थोडा बहुत उड़े परन्तु ओलो की मार से सब के सब घायल होकर जमीन पर गिर पड़े | बहुत से कौए मर गए | मैना जिस आम पर बैठी थी उसकी एक डाली टूट कर गिर गयी | दाल भीतर से साद गयी थी | दाल टूटने पर उसकी जड़ के पास एक गड्ढा हो गया छोटी मैना उसमे घुस गयी और उसे एक भी ओला नहीं लगा | सवेरा हुआ और दो घड़ी चढ़ने पर चमकीली धुप निकली मैना गड्ढे में से निकली पंख फैलाकर, चहक कर उसने भगवान् को प्रणाम किया और उडी |
पृथ्वी पर ओले से घायल हुए कौए ने मैना उड़ते देख कर बड़े कष्ट से पूछा – मैना बहन तुम कहाँ रही, तुमको ओलो को मार से किसने बचाया ? मैना बोली मै आम के पेड़ पर अकेली बैठी थी और भगवन की प्रार्थना कर रही थी दुःख में पड़े असहाय जीव जीव को ईश्वर के सिवाय और कौन बचा सकता है | लेकिन ईश्वर केवल ओले से ही नहीं बचाते और केवल मैना को ही नहीं बचाते | जो भी ईश्वर है, उसे ईश्वर सभी आपत्ति, विपत्ति में सहायता करते है और उसकी रक्षा करते है |
लक्ष्मी जी ऐसा कहकर पुनः अंतर्ध्यान हो गयी | सेठ रोते हुए, संत के चरणों में गिर गया | संत ने मुस्कुराते हुए कहा रोवो मत | मै उन्हें फिर से बुला देता हूँ | सेठ ने रोते-रोते कहा –नहीं स्वामी जी, वह बात नहीं है | आपने मुझ पर बड़ी कृपा की | मुझे जीवन का सबसे बड़ा पाठ मिल गया | अब मै धन नहीं चाहता | अब तो मै अपने बचे हुए जीवन में भगवन का ही भजन करूँगा |
धन के लिए
नीति और रीति
एक शहर में एक करोडपति व्यापारी था जो पत्नी और एकमात्र पुत्र के साथ वैभवशाली
जीवन व्यतीत कर रहा था और दिन-रात अपनी पूंजी को दोगुनी-चौगुनी करने में ही लगा
रहता था | कई देशो में उसका व्यापार फ़ैल चूका था, वह रात को भी चैन से नहीं सोता था
|
एक दिन जब वह
घर आया और भोजन करने बैठा तो अचानक शार्ट सर्किट से घर में आग लग गयी | वह दौड़ कर
बाहर आकर मदद के लिए पुकारने लगा कि जल्दी आओ, मेरी तिजोरी,मेरे हीरे-जवाहरात
जल्दी बाहर निकालो | पडोसी तत्काल दौड़कर, जो सामान ला सकते थे, बाहर ले आये |
कुछ लोगो ने
व्यापारी से पूछा, अन्य को खास चीज रह गयी हो तो बताओं | वह बोला, मुझे तो कुछ याद
नहीं, फिर भी एक बार आप लोग अन्दर जाकर देख लो | वे अन्दर गए और इस बार करुण
क्रंदन के साथ बाहर निकले |
व्यापारी ने
उनसे दुखी होने का कारण पूछा | उन्होंने बाताया कि आपका एकमात्र पुत्र जो सोया हुआ
था , वह जलकर मृत्यु को प्राप्त हो गया है | धन के नशे में व्यापारी अपने बेटे को
ही भूल गया था, जो उसकी सर्वाधिक अमूल्य वास्तु थी और जिसे फिर पाया नहीं जा सकता
था |
किसी ने ठीक कहा है, धन की चाह गलत नहीं है परन्तु चाह की अति अनुचित है क्योंकि यह नैतिक पतन
को जन्म देती है | जिस व्यक्ति के मन में सदा धन कमाने की लालसा बनी रहती है उसके
मूल्य तथा आदर्श अपने आप समाप्त होने लगते है | धन के लोभी व्यक्तियों में अपराध,
अनैतिकता, कुंठा, निराशा, भेदभाव आदि पनपने लगते है | वे अपने से ऊँचे स्तर के लोगो
को देखते है और उनमे किसी प्रकार का चारित्रिक उत्कर्ष,त्याग की भावना आदि न पाकर
स्वयं भी उसी राह को अपनाने के लिए प्रेरित होने लगते है |
ठगी और
बेईमानी से कमाया गया काला धन, दुर्षित मन व दूषित बुद्धि की उपज है | शांति,
धीरज, संतोष, परिश्रम, नैतिकता आदि के आभाव में मनुष्य का मन काला होने लगता है |
वह स्वार्थ के गुड़ में मक्खी की तरह चिपकने लग जाते है | धन का अभिमान उसे इन्सान
से हैवान बना देता है |
धन के साथ दर
भी छिपा है | हर धनवान व्यक्ति अपनों से ही भय खाता है, चोरो से भी डरता है तो कभी
सरकार का हाथ न पड़ जाए, इसका भी दर उसे सताता है | आधुनिक युग में धन के परस्पर
विरोधी रूप सामने आ रहे है | कहा जाता है,
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धन ताकतवर कमाते है परन्तु धन कमजोरी भी बन जाती है |
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धन से चतुराई आती है परन्तु धन बुद्धि भ्रष्ट भी करता है |
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धन से महल बनते है परन्तु धन घर बिखेरता भी है |
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धन से दोस्त बनते है परन्तु धन दुश्मनी का कारण भी है |
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धन से सुरक्षा मिलती है परन्तु धन असुरक्षित भी कर देता है
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धन से हिम्मत खुलती है परन्तु धन दिन रात डराता भी है |
विनाशी धन खाद की तरह है | जब तक इसे फैलाया ना जाए तब तक
यह बहुत कम उपयोगी होता है | कहावत है, धन को नीति से कमायें, रीति से खर्च करे
अर्थात् ईमानदारी और परिश्रम से धन कमायें और रीति अर्थात परहित व सद्कार्य में
खर्च करें | शानदार के किसी भी धर्म ने यह नहीं कहा गया ही कि धन न कमायें, धन
जरुर कमायें परन्तु उसके दोषों से दुरी बनाए रखे |
कहते है, जिसके पास धन नहीं है, वह निर्धन है परन्तु जो धन
के पीछे भागता ही रहता है, वह असली निर्धन है | जो सबसे ज्यादा पाटा है वह धनी
नहीं है, जो सबसे ज्यादा देता है, वह धनि है | धन से इतना भी जा जुड़ जाएँ कि हर
क्रिया भोग में बदल जाए और परिणाम उसका यह निकले कि हमारी ख़ुशी ही गायब हो जाए |
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