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Showing posts from November, 2017

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 आप हिम्मत का एक कदम बढाओं तो परमात्मा की सम्पूर्ण मदद आपके साथ होगी !

अपने मन से भय को भगाए दूर

                     हम सभी अपने जीवन में जाने-अनजाने भय से रूबरू होते है | कभी यह ज्ञात का भय होता है तो कभी अज्ञात का | हम अपने भय से निजात पाना चाहते है | भय को भागने के लिए सबसे पहले स्वयं का आत्म विश्लेषण करे कि हमारे दर का कारण क्या है | जब हम अपने दर का कारण समझ जाते है तो हमारे लिए उसका सामना करना आसान हो जाता है |                                                   कई बार अमरे मन का दर अतीत में हुई किसी पुरानी घटना की वजह से भी जन्म लेता है | उदाहरण के लिए, अगर भूतकाल में कभी आपको कुत्ते ने काटा हो तो कुत्ते को देखते ही मन की स्मृति की पुरानी फ़ाइल सामने आ जाती है और भय सताता है | कुछेक बार भय का कारण किसी व्यक्ति से विशेष लगाव हो सकता है जिस कारण उसे खो देने का भय हमें सत...

पशुपतिनाथ की धरती पर परमात्मा शिव

  पशुपतिनाथ की धरती पर परमात्मा शिव भगवान शिव का एक नाम पशुपतिनाथ भी है | पशु शब्द पाश से बना है | पाश का अर्थ है बंधन | जो पाशों से बंधा हो उसे पशु कहा जाता है | पशु तो स्थूल बन्धनों से बंधा होता है परन्तु मानव आत्मा जब का, क्रोध,लोभ,मोह,आदि सूक्ष्म बन्धनों से जकड़ी जाती है तब उसे इन बन्धनों से मुक्त करने वाले भगवान शिव ही है इसलिए उनका नाम पशुपतिनाथ पड़ गया जिसका अर्थ हुआ पशु की तरह बंधन में बंधी आत्मा को मुक्ति दिलाने वाले स्वामी | नेपाल में पशुपतिनाथ का बहुत प्रसिद्ध मंदिर है जहाँ देश-विदेश के हजारो लोग द र्शनार्थ आते रहते है | मंदिर के गर्भगृह में पंचमुखी शिवलिंग स्थापित है | शिवलिंग पर चारो दिशाओं में और ऊपर की तरह भी एक चेहरा निर्मित है जिसका अर्थ है की वे सब ओर से अपने भक्तो को निआल करते है | देहधारी मनुष्य का तो फ्रंट पोज,बैक पोज, साइड पोज अलग-अलग होता है परन्तु भगवान शिव बिदेही होने के नाते उनके सर्व पोज एक सामान ही है | सारा मंदिर चाँदी से मढ़ा हुआ है और शाम की आरती के समय इसके चारो दिशाओं के चारो द्वार खोल दिए जाते है ताकि भक्त लोग सब तरफ से उनसे वरदान ...

धर्म और कर्म का तालमेल

मानव आत्मा जब तक शरीर में है, कर्म से मुक्त नहीं हो सकती | उसमे भी युवावस्था सर्वाधिक कार्यशील अवस्था है | इस अवस्था में उसमे अतिरिक्त शक्ति होती है | यदि इस अतिरिक्त शक्ति का रचनात्मक कार्यों में प्रयोग न किया जाए अथवा युवकों को संतोष,शांति,सद्विचार देने वाला कोई उपाय न अपनाया जाये तो वह अतिरिक्त शक्ति या तो उन्हें बुरी आदतों में दाल देती है या वे उन शक्तियों का दुरूपयोग विध्वंसात्मक गतिविधियों में करते है | अतः कर्म के साथ धर्म अर्थात सद्गुणों की धारणा का संतुलन बाल्यकाल से ही अनिवार्य है | हम कह सकते है कि जब मानव सर्वाधिक कर्मशील हो तब उसका सर्वाधिक धर्मशील होना भी अनिवार्य है |                    धर्म कहता है, झुक जाओ  मान लीजिये, दो गाड़ियाँ आमने-सामने है | दोनों के   चालको को अपने-अपने कार्य की जल्दी है | एक कहता है, तुम पीछे हटो , मै निकलू | दूसरा कहता है, नहीं, तुम थोड़े पीछे हट जाओ, पहले मैं निकल जाता हूँ | इस मै-मै में दोनों अकड़कर खड़े है | दोनों कर्मशील तो है,दोनों को अपने-अपने कार्यो ...

बच्चे करते है अनुकरण माता-पिता का

दुनिया में प्रत्येक माता-पिता का ये सपना होता है कि उनकी संतान सुयोग्य , सुशिक्षित ,संस्कारी व् आज्ञाकारी हो | इसके लिए उनका सदा यही प्रयास रहता है कि वे अपने बचो को श्रेष्ठ संस्कारो की पूँजी ही विरासत में दे | नि:संदेह दुनिया में अगर परमपिता परमात्मा के पश्चात् किसी का स्थान है तो वह माता-पिता का ही है | माता-पिता के प्यार, त्याग और पालना को कोई भी शब्दों में बयान नहीं कर सकता है लेकिन आजकल बच्चे माता-पिता के सपने पुरे करने में सक्षम नहीं हो पा रहे, कारण क्या है ?       माता-पिता पूछे स्वयं से एक सवाल मेरा सर्व माताओं-पिताओं से विनम्र निवेदन है कि एक बार सच्चे दिल से स्वयं से पूछे, हम जैसा अपने बच्चो को बनाना चाहते है, क्या हम स्वयं वैसे है ? माता-पिता चाहते है कि उनकी संतान सदा सत्य बोले पर वे स्वयं से पूछे, क्या हम स्वयं सदा सत्य की राह पर चलते है ? माता पिता उनसे क्या चाहते है परन्तु माता-पिता जो करते है, बच्चे फालो अवश्य करते है |            बने अच्छे इन्सान मै कही भी जाता हूँ – चाहे स्कूल ...

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