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 आप हिम्मत का एक कदम बढाओं तो परमात्मा की सम्पूर्ण मदद आपके साथ होगी !

अपने मन से भय को भगाए दूर



                    

हम सभी अपने जीवन में जाने-अनजाने भय से रूबरू होते है | कभी यह ज्ञात का भय होता है तो कभी अज्ञात का | हम अपने भय से निजात पाना चाहते है | भय को भागने के लिए सबसे पहले स्वयं का आत्म विश्लेषण करे कि हमारे दर का कारण क्या है | जब हम अपने दर का कारण समझ जाते है तो हमारे लिए उसका सामना करना आसान हो जाता है |
                         

                       



कई बार अमरे मन का दर अतीत में हुई किसी पुरानी घटना की वजह से भी जन्म लेता है | उदाहरण के लिए, अगर भूतकाल में कभी आपको कुत्ते ने काटा हो तो कुत्ते को देखते ही मन की स्मृति की पुरानी फ़ाइल सामने आ जाती है और भय सताता है | कुछेक बार भय का कारण किसी व्यक्ति से विशेष लगाव हो सकता है जिस कारण उसे खो देने का भय हमें सताता है | दर का कारण भूतकाल में जाने-अनजाने किये गए पापकर्म भी हो सकते है जो वीभत्स रूप में वर्तमान में हमारे सामने आकर हमें डरा रहे हो |
ये हमारे दर ही है जो हमें कमजोर बनाते है | अकेले होने का दर, जोखिम लेने का दर, , कुछ छुट जाने का दर, जिम्मेवारी का दर, असुरक्षा का दर, मृत्यु का दर, सामना करने का दर आदि भय के अन्य अनेक कारण है | जब तक हम इन भयों से पूरी तरह मुक्त नहीं होंगे तब तक हमारा विकास नहीं हो सकता और तब तक हम दूसरो की नजरों में भी अपना खास स्थान नहीं बना पाएंगे |
एक शोध के अनुसार लोगो के 99% दर बेवजह होते है | यदि उनके लिए सही कदम उठाया जाए तो मुक्ति संभव है | स्वामी विवेकानन्द के अनुसार – भय से ही दुःख आता हिया,, भय से ही मृत्यु होती है और भय से ही अनेक बुराइयां उत्पन्न होती है |
                         




अगर हम भय ओ अपने जीवन में स्थान देते है और उसे अपनी जिन्दगी को चलाने देते है तो यह एक भयानक स्थिति बन जाती है जो रोगों को जन्म देती है | यदि हम किसी भी रोग के कारण की खोज करे तो दो ही कारक मिलेंगे --- तनाव और भय |
अस्सी के दशक में एक अपराधी के साथ एक प्रयोग किया गया | उसके सामने एक घोड़े को लाया गया और कहा गया कि यह जैसी मौत मरेगा, वैसे ही आप भी मरेंगे | घोड़े को कोबरा सांप से कटवाया गया, वह तड़प-तड़प कर मर गया | व्यक्ति ये सब ध्यान से देख रहा था | फिर उसकी आँखों पर पट्टी बाँधी गई | उसे कटवाया गया लेकिन कोबरा से नहीं , चूहे से, उसने भी वैसे ही तड़पना शुरू कर दिया | जितने समय में घोड़े ने शरीरी छोड़ा , ठीक उतने ही समय बाद उसने शरीरी छोड़ दिया | हैरानी की बात थी कि जब दोनों के खून की जाँच की गई तो दोनों के शरीर में सामान जहर पाया गया | इससे स्पष्ट है कि भय का शरीर पर किस कदर कुप्रभाव होता है |
चिकित्सकीय खोजो से यह बात सिद्ध हो गई है की मन का शारीरक क्रियाओं पर प्रबल प्रभाव पड़ता है | यदि आपका मन शांत है और विश्वास से भरा है तो यदि आप रोगी भी है तो भी आपके रोगमुक्त होने के पर्याप्त अवसर है किन्तु यदि आपका मन भय अथवा चिंता से ग्रस्त है तो आप स्वस्थ रह ही नहीं सकते | भय न केवल आपको शारीरिक रूप से बल्कि मानसिक रूप से भी कमजोर बना देता है | जिस पल आप अपने को भयमुक्त बनाने की कोशिश शुरू कर देते है, उसी समय आपकी सेहत दुरुस्त होने लगती है, आपका मन मजबूत बनने लगता है |
वह व्यक्ति जीवन का पहला सबक भी नहीं सिख पाटा जो हर रोज अपने दर को जेट नहीं लेता | किसी ने बहुत अच्छा कहा है ----- भले हम तुफानो से घिरे है पर किनारे पर खड़े उन हजारो लाखो लोगो से अच्छे है जिन्होंने सागर को पार करने की हिम्मत ही नहीं की |
तू रख यकीं बस अपने इरादों पर,
तेरी हार तेरे हौसले से बड़ी तो नहीं होगी |





यदि भय हमारे जीवन को पंगु बनता है और रोगों को जन्म देता है तो आवश्यकता है की हम भय को भगाए | भय के भागते ही आपका सम्पूर्ण व्यक्तित्व रूपांतरित हो जायेगा, आप स्वयं को उर्जावान अनुभव करेंगे तथा दूसरो की नजरो में भी स्वयं के लिए सम्मान का अनुभव करेंगे | प्रश्न उठता है कि भय को कैसे भगाए | भय से भागना नहीं है लेकिन उसे भगाना है | भय पर जीत पाने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि हु भी के प्रति अपनी सोच को बदले | हम अपना ध्यान संभावित अनिष्ट (नकारात्मक) से हटाकर बलिष्ठ (सकारात्मक) की तरफ लगाये | हर घटना के नकारात्मक और सकारात्मक दोनों पहलु होते है | कहते है, दूध के फटने से वो लोग उदास हो जाते है, जिन्हें पनीर बनाना नहीं आता | हम सकारात्मक सोच रखे | आत्मछवि सुधारना सहज हो जाएगा |
जिस चीज से दर लगता है, उसका सामना करे | FEAR हमें क्या कहता है – Face Everything  And Rise. अगर हमें स्वयं को ऊँचा उठाना है, आगे बढ़ाना है तो अपने अन्दर के दर से मुक्ति पानी ही होती | दर से पार पाना नामुमकिन नहीं बल्कि बहुत आसान है | बस इसके लिए थोड़ी सी हिम्मत जुटाने की जरूरत है |
मुझे याद है, बचपन में मै बहुत संकोची थी | कक्षा में अध्यापक कोई प्रश्न पूछते तो मै खड़े होकर उत्तर देने में भी हिचकिचाती थी | थी | एक बार स्कूल की प्रार्थना सभा में हमारे हिंदी के अध्यापक ने हिंदी का कोई प्रश्न पूछा, किसी ने हाथ खड़ा नहीं किया | बाद में उन्होंने कहा कि जो विद्यार्थी इस प्रश्न का सही जवाब देगा,मै उसे इनाम दूंगा | मुझे उस प्रश्न का उत्तर आता था लेकिन अपने संकोची स्वभाव तथा इस दर के कारण कि अगर मेरा उत्तर गलत हुआ तो सब मुझ पर हसेंगे, मैंने हाथ खड़ा नहीं किया | हमारे अध्यापक ने कहा कि बड़े दुःख की बात है की किसी को इस प्रश्न का उत्तर नहीं आता | फिर उन्होंने उसका उत्तर बताया , मेरा सोचा गया उत्तर सही था | उस समय मुझे बहुत दुःख हुआ कि  मैंने हाथ क्यों नहीं खड़ा किया | उसी समय मैंने स्वयं से प्रतिज्ञा की कि मै भविष्य में कभी भी संकोच नहीं करुँगी | हर बात में आगे रहूंगी | उसके बात जब भी किसी कार्य को करने के लिए पूछा जाता ,  भले वह कार्य मुझे ना भी आता हो, मै सबसे पहले हाथ खड़ा करती | इस प्रकार अपने भय का मैंने सामना किया और उससे मुक्ति पाई और इससे मुखे आगे बढ़ने में बहुत मदद मिली | मेरे  व्यक्तित्व का सम्पूर्ण विकास हुआ |
जीवन में सबसे ज्यादा उदासी से भरे ये शब्द हो सकते है __ काश, मैंने किया होता, मै कर सकता था, मुझे करना चहिये था, मैंने क्यों नहीं किया  |
जीवन में एक भय लोगो का भी होता है | लोग क्या कहेंगे | लोगो के बे से हम सही कार्य को करने से भी डरते है | हम अपनी अंतरात्मा की आवाज को दबा देते है | किसी ने बहुत अच्छा कहा, है जीवन का सबसे बड़ा रोग, क्या कहेंगे लोग | आप चाहे अच्छा करो या बुरा, लोग हर हालत में बोलेंगे ही, इसलिए लोगो के बोलने की चिंता न करके , आपको जो सही लगता है, वहां करे |
           

        


दर को भागने में आध्यात्मिकता बहुत सहायक हो सकती है | आध्यात्मिकता हमें बताती है कि मै कौन हूँ | मै आजम,अमर,अविनाशी चैतन्य आत्मा हूँ, शरीर तो मेरे वस्त्र मात्र है, इस स्मृति से मृत्यु का भय निकल जाता है |
दूसरा, आध्यात्मिकता हमें बताती है कि मेरा कौन है | मेरा सच्चा पिता सर्वशक्तिमान परमपिता परमात्मा शिव है जो हर पल मेरे साथ है , वही मेरा सच्चा रक्षक है | यह स्मृति भी भय को भगा देती है | वास्तव में दर विश्वास के विपरीत है | जब हम डरते है तो हम भगवान को यह सन्देश देते है कि हम उस पर विश्वास नहीं करते |
एक गुरु और शिष्य जंगल से होकर गुजर रहे थे | अचानक सामने से शेर आ गया | शिष्य डर के मारे पेड़ पर चढ़ गया | गुरु वही खड़ा होकर परमात्मा को याद करने लगा | शेर कुछ देर तक तो गुरु को देखता रहा, फिर चुपचाप वापिस चला गया | शेर के जाने के बाद शिष्य थर-थर काँपताहुआ पेड़ से उतरा और फिर दोनों चल पड़े | कुछ दूर जाने इ बाद गुरु की गाल पर एक मच्छर ने काटा | गुरु जोर से चीखा | शिष्य ने पूछा, क्यों महाराज, तब तो शेर के आने पर भी नहीं डरे, अब एक छोटे से मच्छर ने काट लिया तो इतना जोर से चीख रहे हो | गुरु ने कहा, मुर्ख, उस समय तो मै भगवान् के साथ था , अब तेरे साथ हूँ |
इस प्रकार जब हम परमात्मा को साथी बनाते है तो बड़ी से बड़ी मुसीबत भी ताल जाती है | निर्भय बनने में परमात्मा का साथ और स्मृति हमारी बहुत मदद करती है | परमात्मा की स्मृति एक कवच की भांति हर विपरीत परिस्थिति में हमें सुरक्षित रखती है |
तीसरी, आध्यात्मिकता हमें बताती है कि जो हुआ, अच हुआ, जो हो रहा है, अच्छा हो रहा है तथा जो होगा कल्याणकारी है, हर आत्मा अपना पार्ट अच्छी तरह बजा रही है | यह स्मृति भी भय से निजात पाने में मदद करती है | यह स्मृति भी भय से निजात पाने में मदद करती है |
भय को अपना भाग्य मत बनाइये | निर्भीकता में जादू है | इस जादू को अपने जीवन में चलने दीजिये  |

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