पशुपतिनाथ की धरती पर परमात्मा शिव
भगवान शिव का एक नाम पशुपतिनाथ भी है | पशु शब्द
पाश से बना है | पाश का अर्थ है बंधन | जो पाशों से बंधा हो उसे पशु कहा जाता है |
पशु तो स्थूल बन्धनों से बंधा होता है परन्तु मानव आत्मा जब का, क्रोध,लोभ,मोह,आदि
सूक्ष्म बन्धनों से जकड़ी जाती है तब उसे इन बन्धनों से मुक्त करने वाले भगवान शिव
ही है इसलिए उनका नाम पशुपतिनाथ पड़ गया जिसका अर्थ हुआ पशु की तरह बंधन में बंधी
आत्मा को मुक्ति दिलाने वाले स्वामी |
नेपाल में पशुपतिनाथ का बहुत प्रसिद्ध मंदिर है
जहाँ देश-विदेश के हजारो लोग द र्शनार्थ आते रहते है | मंदिर के गर्भगृह में
पंचमुखी शिवलिंग स्थापित है | शिवलिंग पर चारो दिशाओं में और ऊपर की तरह भी एक
चेहरा निर्मित है जिसका अर्थ है की वे सब ओर से अपने भक्तो को निआल करते है |
देहधारी मनुष्य का तो फ्रंट पोज,बैक पोज, साइड पोज अलग-अलग होता है परन्तु भगवान
शिव बिदेही होने के नाते उनके सर्व पोज एक सामान ही है | सारा मंदिर चाँदी से मढ़ा
हुआ है और शाम की आरती के समय इसके चारो दिशाओं के चारो द्वार खोल दिए जाते है
ताकि भक्त लोग सब तरफ से उनसे वरदान ले सके |
मंदिर के मुख्य द्वार के सामें दो नंदिगण स्थापित
है | एक बड़े रूप में और एक छोटे रूप में | नंदी का अर्थ है आनंदित करने वाला |
भगवान शिव का वाहन बनने वाला कितना भाग्यशाली और सभी के चित्त को हर्षाने वाला
होगा ! इसलिए नाम पड़ा नन्दी अथवा भागीरथ (भाग्यशाली रथ) कोई और नहीं, स्वयं
प्रजापिता ब्रह्मा ही है | धरती पर ईश्वरीय कर्तव्य की पूर्ति के लिए भगवान शिव को
दो मानवीय रथो का आधार लेना पड़ता है इसलिए दो नंदीगणों का स्थापित होना उचित है |
श्री श्री पशुपतिनाथ मंदिर के साथ ही बागमति नदी
बहती है जिसके किनारे पर बने ऊँचे मंच पर शाम की आरती का द्रश्य मन को प्रफुल्लित
करने वाला होता है | भगवान शिव की महिमा के गीतों से गायक और वादक दिल के तारो को
झनझना देते है | इस सजीव संगीतमय वातावरण में हजारो श्रद्धालु ताल के साथ ताल
मिलकर झूमते है | अधिक आनंद यह देखकर कि श्रद्धालुओं में अधिकतर 20 से 40 वर्ष की
आयु के युवा आया कि भाई-बहने थे | बुजुर्ग बहुत कम थे | युवाओं का यह शिव प्रेम
वास्तव में धर्म और संस्कृति का गौरव है | इसी परमात्मा के सत्य परिचय के सम्बन्ध
में कुछ उच्चारण करने के लिए कहा गया | पढ़े-लिखे युवा श्रद्धालुओं को देखकर मेरे
मन से विचार निकले कि देवनागरी लिपि ‘अ’ से शुरू होकर ‘ज्ञ’ पर ख़त्म होती है जिसका
स्पष्ट अर्थ है कि हम अज्ञान से ज्ञान की ओर बढ़ते चले | स्वयं को शरीर समझना सबसे
बड़ा अज्ञान और स्वयं को आत्मा समझना सबसे बड़ा ज्ञान है |
आरती की समाप्ति पर भेंट स्वरुप मिली रुद्राक्ष
माला भी ईश्वरीय प्रेम और कर्तव्य की
स्मृति डोलने वाली रही |
रुद्राक्ष का अर्थ है (रूद्र+अक्ष) भगवान शिव की
आंखे अर्थात उनकी आँखों में समाये हुए उनके लाडले बच्चे जो विश्व परिवर्तन के
दिव्य कार्य में उनके सहयोगी बनते है | माला को प्राप्त करके भगवान शिव के कर्तव्य
को और भी तीव्रगति से आगे बढ़ने और उनकी आँखों का तारा (बहुत प्यारा) बनने का दृढ
संकल्प मन में उत्पन्न हुआ |
काष्ठ
मंडप
नेपाल की राजधानी काठमांडू है | यहाँ एक ही लकड़ी
से बने एक परहीं मंदिर का नाम काष्ठ मंडप था, जो 2015 में हए भूकंप के दौरान गिर
चूका है | उसी के आधार पर काठमांडू नाम पड़ा है | इस शहर की आबादी लगभग 56 लाख है
और यहाँ ब्रह्मकुमारिज की 50 से भी अधिक शाखाएँ सेवारत है | पहाड़ो के बीच की
सुन्दर घाटी में बसे काठमांडू शहर को मंदिरों का शहर माना जाता है | इसमें 2000 से
भी अधिक मंदिर है |
विश्वशान्ति पोखरी
शहर के बीचोबीच बहुत ऊंचाई पर स्थित स्वयंभू
मंदिर का मुख्य आकर्षण वहां की विश्वशान्ति पोखरी (WORLD PEACE POND) है | इस गोलाकार पोखरी पानी के मध्य महात्मा
बुद्ध की कहदी मूर्ति है जिसके वरदानी हाथ से जलधारा निरंतर सामने रखे ग्लोब पर
गिरती है | जो मानव के मन से प्रकम्पनो के रूप में सारे विश्व में फैलता है | इस
बात को हाथ से निकलती हुई जलधारा के रूप में दर्शाया गया है | परमात्मा पिता कहते
है, बच्चे ,आप जितना शांति के संकल्प निर्मित करेंगे और फैलायेंगे उतना विश्व
शांति में आपका योगदान जमा योग |
भगवान शिव भाई के रूप में
रानी पोखरी नाम के स्थान पर स्थित शिव-मंदिर साल
में एक बार भैया दूज के दिन खुलता है | जिन बहनों के भाई नहीं होते वे उस दिन
भगवान शिव को भाई के रूप में तिलक देने वहां जाती है | भगवान शिव संगमयुग में धरती
पर आकर माता-पिता , बन्धु,सखा......... आदि सर्व सम्बन्ध मानवात्माओ से निभाते है,
यह मंदिर इसी की यादगार है |
बूढा नीलकंठ
प्रजापिता ब्रह्मकुमारिज ईश्वरीय विश्व विद्यालय
के संस्थापक पिताश्री ब्रह्मा बाबा, सन
1937 में उनके तन में परमपिता परमात्मा शिव को प्रवेशता से पहले , जब अपने लौकिक
जीवन में थे और हीरे जवाहरात का व्यापार करते थे तब व्यापारिक उद्देश्य से नेपाल
आते रहते थे | हर बार वे काठमांडू स्थित बूढा नीलकंठ मंदिर में शेषशैया पर लेटे हए
विष्णु जी के दर्शन अवश्य करते थे | अपने भक्तिकाल में वे विष्णु के अनन्य भक्त तो
थे परन्तु नारी जाती के प्रति अत्यन्त सम्मान के कारण उन्हें विष्णु जी की वही
मुती या छवि प्रिय होती थी जिसमे श्री लक्ष्मी जी उनके पांव ना दबा रही हो | बूढा
नीलकंठ मंदिर की मूर्ति ऐसी ही मुती है जिसमे विष्णु जी अकेले ही जल के बीचोबीच
शेषशैया पर लेटे हुए दिखाए गए है | परमपिता परमात्मा शिव ने हमें समझाया है कि
श्री विष्णु,मानव का सर्वोतम लक्ष्य है | विष्णु समान दिव्य गुणवान बनने के लिए
अपने भीतर मौजूद विष (काम,क्रोध आदि विकार) को अणु की तरह अद्रश्य कर देना आवश्यक
है |
भारत में जहाँ कन्या-भ्रूण हत्या एक भयंकर सामजिक समस्या के रूप में उभर कर सामने आई है और देश के
प्रधानमंत्री ने ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ का नारा देकर कन्याओं की सुरक्षा और विकास को
सुनिश्चित करने के लिए जनता का आह्वान किया है वही नेपाल में प्राचीन काल से, छोटी
कुमारियों को जीवित देवी के रूप में पूजने, उनसे राज कार्य में मार्गदर्शन और आशीर्वाद लेने की प्रथा देखने को मिली |
नेपाल नाल भारत की तुलना में गरीब है | भारत का 1.00 रुपया , नेपाल के एक रुपये 60
पैसे के बराबर है | नेपाल में कन्या-भ्रूण हत्या जैसी समस्या नहीं है |
कुमारी
पूजा
नेपाल में कुमारी पूजा का प्रारम्भ आज से 1437
वर्ष पूर्व हुआ मन जाता है | लीछवी वंश के राजा गुणकामदेव ने कुमारी कन्या पूजा की
धार्मिक प्रथा को विधिवत रूप प्रदान किया | इतिहास में वर्णित है कि बाद में सन
1324 में मल्ल राजाओं ने तुलजा भवानी को अपनी इष्ट देवी के रूप में स्वीकार किया |
उनके पास एक शक्तिशाली तांत्रिक यन्त्र था जिससे वे देवी के साथ व्यक्तिगत बातचीत
करके राज्य कारोबार के विषय में मार्गदर्शन लेते थे | एक बार राजा त्रैलोक्य मल्ल
की सुपुत्री गंगा देवी ने उस यन्त्र को खोला और उसकी झलक ले ली | किसी महिला के
द्वारा यह यन्त्र देखना निषेध था | इस कारण देवी ने राजा से कहा,आज के बाद मै आपसे
व्यतिगत बातचीत नहीं करुँगी | मै एक कुमारी का रूप धारण करके आपको सलाह देती
रहूंगी | आप शाक्य परिवार में से किसी
छोटी कुमारी को चुन इ, ऐसा कहकर देवी अद्रश्य हो गई |
यह माना जाता है कि बच्चे का ह्रदय हर प्रकार की
विकृति (क्रोध,धोका, चालाकी, आदि) से मुक्त होता है | तब से शाक्य वंश की एक छोटी
कुमारी (3-6 वर्ष) को उसके माता-पिता की अनुमति से जीवित देवी बनाने की प्रथा चलती
आ रही है | इस जीवित देवी के 11 वर्ष की होने के बाद नई कुमारी का चुनाव किया जाता
है और उसके देवी बनने की घोषणा महाष्टमी
के दिन की जाती है | सन 1757 में देवी कुमारी के लिए अलग घर का निर्माण करवाया गया
| इस सम्बन्ध में भी इतिहास में वर्णन आता है कि अंतिम मल्ल राजा , जयप्रकाश मल्ल को श्रीकुमारी स्वप्न में दिखाई
दी और कहा, हे राजा, आपका राज्यकाल पूरा होने वाला है परन्तु यदि आप मेरे रहने का
एक स्थाई घर बनवाने का और मेरे नाम पर रथ-यात्रा उत्सव शुरू करने की प्रतिज्ञा करे
तो मै आपके राज्यकाल को 12 वर्ष तक बढ़ा दूंगी | तब राजा ने कुमारी घर का निर्माण
करवाया और एक रथ-यात्रा उत्सव का प्रारम्भ भी करवाया जो अभी तक चलता आ रहा है और
देवी के कथन अनुसार राजा ने अगले 12 वर्षो तक राज्य कारोबार को सम्भाला | जो कुमारी
देवी रूप का कार्यकाल पूरा कर लेती है उसे नेपाल सरकार, उसकी 21 वर्ष की आयु होने
तक 300 रु० प्रतिमास भत्ता देती है | सार रूप में, नेपाल की रक्षा करने वाले अनेक
देवी-देवताओं के मध्य श्रीकुमारी भी सबकी रक्षा करने का महत्वपूर्ण रोल अदा करती
है | मुझे भी जीवित देवी कुमारी के दर्शनों का सौभाग्य मिला | परमात्मा पिता ने
स्रष्टि परिवर्तन के कार्य में पवित्र कुमारियों को निमित्त बनाकर देवी रूप में
संसार के सम्मुख उन्हें सम्मनित स्थान दिया | उसकी यादगार रूप में कुमारी पूजन की
प्रथा चली आ रही है | नेपाल में कुमारी को देवी रूप में सम्मानित स्थान देकर राजा
(वर्तमान समय राष्ट्रपति तथा एनी राजनैतिक नेता और अधिकारीगण) अथवा प्रजा दारा
उससे मार्गदर्शन और आशीर्वाद लेने की
प्रथा भी उसी से प्रेरित प्रथ है | आइये,हम कन्या भ्रूण-हत्या को बोझ माने की
मानसिकता का त्याग करे और कन्याओं को देवी रूप में सम्मानित पद देकर ईश्वरीय
कर्तव्य में मददगार बने |
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