रक्षा बंधन यह भाई- बहन का पवित्र बंधन है जो
सभी बुराइयों मुक्त कर पवित्र बंधन में भाई को बांधा जाता है |
इस पवित्र बंधन बहुत बहुत बार प्रणाम |
रक्षा बंधन का त्यौहार न जाने कितने दूर वालो को नजदीक और नजदीक वालो को और ही
नजदीक लाकर एक मीठी गुदगुदी, विश्वास और अपने पन की भावना जगाकर नवीनता भर जाता है
| किसी व्यक्ति विशेष से संबधित न होने के कारण इसके पीछे एक विशाल भावना छिपी हुई
है, वह है भाई-बहन के सत्य, अविनाशी पावन त्याग भरे रिश्ते की भावना |
स्वाभाव से स्वतंत्रता प्रेमी होने के नाते मनुष्य हर बंधन से छूटना चाहता है
| परन्तु यह न्यारा-प्यारा बंधन है जिसे उत्सव समझ कर सभी ख़ुशी से बंधवाते है |
बंधन भी दो प्रकार के होते है | एक है सांसारिक अर्थात कर्मो का बंधन, जो मानव के
लिए सुख लेकर आता है | रक्षा-बंधन भी अपने सुद्ध रूप में एक आध्यात्मिक रस्म है,
लेकिन मात्र सांसारिक रूप से मनाने के कारण इस त्यौहार के महत्व कम हो गयी है |
मुख्य रूप से इस त्यौहार के पीछे यही राज बताते है कि इस दिन भाई बहन को रक्षा
का वचन देता है और बहन भाई को राखी बंधती है और मुख मीठा कराती है | परन्तु देखा
जाता है कि छोटा भाई शारीरिक दृष्टिकोण से भी बहन की रक्षा करने में असमर्थ हो
सकता है | कई परिस्थितियों में भाई दूर रहता है | और समय पर अपनी बहन की रक्षा
करने में असमर्थ होता है | फिर यह भी बात आती है कि क्या रक्षा की जरुरत केवल बहन
को ही है, भाई को नहीं होती ?
इतिहास तो ऐसी नारियों की गाथा से गौरवान्वित है जिनसे पुरुषो ने भी रक्षा की
कामना की | जैसे झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई और रानी दुर्गावती | फिर रक्षा का
उत्तरदायित्व बचपन में पिता पर जवानी में पति पर, बुढ़ापे में पुत्र पर माना जाता
है | तो रक्षा की जिम्मेवारी केवल भाई पर ही क्यों राखी बांधी गयी ? सदियों से इस
त्यौहार के मनाये जाते रहने पर भी आये दिन बलात्कार अपहरण जैसी कितनी घिनौनी
घटनाएँ घटती है | तो क्या उन भाइयों को राखी नहीं बाँधी जाती है ?
एक और भी सोचने वाली बात है कि क्या देवकी ने कंस को राखी नहीं बाँधी होगी, जब
कि आर्य ग्रंथो के अनुसार वह सनातन धर्म के अनुगामी थे ? छत्रपति शिवाजी ने
गोहर्बानु के साथ जो रिश्ता निभाया वह तो सभी जानते है जबकि गोहर्बानु ने शिवाजी
को कभी भी राखी नहीं बाँधी थी, वह तो मुस्लिम धर्म को मानने वाली थी | रक्षा-बंधन
कोई स्थूल बंधन नहीं है | धर्म अर्थात श्रेष्ठ गुणों की धारणा जो धर्मं की रक्षा
करता है, धर्म उसकी रक्षा करता है | जो मन-वचन-कर्म से पवित्रता की मर्यादा की
रक्षा करता है पवित्रता उसकी रक्षा करती है |
बहन-भाई के नाते में पवित्रता समाये होने के नाते बहने यह शुभ कार्य करती है
| परन्तु सदा काल की पवित्रता देने वाले
और सदा काल के लिए सुरक्षा की गारंटी देने वाले एक परमात्मा पिता ही है | वही सर्व
समर्थ है सृष्टि नाटक के नियंता है और इसके परिवर्तक है | कलियुग के अंत में
कृपानिधि परमपिता परमात्मा स्वयं अवतरित होकर हर मनुष्य आत्मा को श्रेष्ठ
दृष्टि,वृत्ति और कृति की राखी बांधते है | इस कार्य में वह स्त्री-पुरुष का भेद न
रख कर हर आत्मा को विकार ग्रसित देखकर उसे राखी बंधवाने का अधिकारी समझते है |
जहाँ पवित्रता आ जाती है वहां सर्व प्राप्तियां पीछे-पीछे आती है |
जिस प्रकार कमल का फुल न्यारा और प्यारा रहने का प्रतीक है, इसी प्रकार
रक्षा-बंधन बुराइयों से रक्षा करने वाले अध्यात्मिक बंधन में बढ़ने का प्रतीक है |
बात याद रखने के लिए पल्ले से गांठ बाँधने का रिवाज हमारे यहाँ प्रचलित है | इसी
प्रकार राखी भी भगवान् के साथ उसकी श्रेष्ठ मत पर चलने का वायदा है |
रक्षा-सूत्र बाँधने के साथ-साथ इस पर्व की दो रस्मे और भी है | एक है मस्तक पर
तिलक लगाना और दूसरा है मुख मीठा कराना| तिलक वास्तव में आत्म-स्मृति का प्रतीक
है, की हम सभी शरीर रूपी कुतिया की भृकुटी में स्थित चेतन, दिव्य आत्मा है | और
मुख मीठा कराने के पीछे भाव है कि हम सभी को सदा मीठे वचन बोले हमारे बोलचाल और
व्यवहार में कही भी कड़वाहट ना हो | अतः रक्षा –बंधन वह न्यारा –प्यारा बंधन है जो
मनुष्य आत्माओं को सब बन्धनों से मुक्त कर देता है |
Comments
Post a Comment