जैसे जैसे नवरात्रि का दिन आता,
पैर थिरकने लग्गते है | श्री दुर्गा माँ के लिए भक्त व्रत तथा उपवास रखते है | साथ
साथ कोई भी पाप कर्म न हो, उसकी परहेज रखते है | नौ दिन का ये लम्बा त्योहार बड़े
धूम धाम से हर कोई मनाता है |
‘पूर्व काल में देवताओं और असुरो में
पुरे सौ वर्ष तक जो युद्ध हुआ , उसमे असुरों का स्वामी ‘महिषासुर’ देवताओं को
हराकर इंद्रा बन बैठा | तब सभी देवताओं ने विष्णु और शिव को क्रोध आया , उनकी
भौहें चढ़ गई और मुंह टेढ़ा हो गया | तब विष्णु के मुख से और ब्रह्मा, शंकर तथा इंद्रा
आदि के शरीरी से तेज निकला | वह सब मिलकर एक देवी का रूप हो गया शंकर के तेज से
उसका मुख , विष्णु के तेज से भुजाएं और यमराज के तेज से उसके सिर के बाल और
ब्रह्मा के तेज से उसके शरीर के अन्य भाग हुए | इन्ही का नाम ‘श्री लक्ष्मी’ हुआ |
उसी देवी को ही दुर्गा सप्तशती ‘ में भद्रकाली और अम्बिका भी कहा गया है और दुर्गा
भी | उस देवी महालक्ष्मी अथवा दुर्गा के
चरणों से पृथ्वी दबती जा रही थी और धनुष की तानकर से पातळ क्षुब्ध होते जा रहे थे
|’
आगे लिखा है कि असुरो कि सेना कई
अरब और रथ कई करोड़ थे | देवी ने उनसे युद्ध किया | रणभूमि में देवी के जितने श्वास
निकले, वे सभी तत्काल ही सैकड़ो हजारो गानों योद्धाओं के रूप में प्रकट हो गए और
अस्त्रों-शस्त्रों से वे भी असुरो से लड़ने लगे | देवी ने हुनकर कि और एक असुर
सेनापति मर गया | आखिर महिषासुर एक भैंस का रूप धारण कर आगे बढ़ा | उसकी श्वास के
प्रचंड वायु के वेग से उड़े हुए सैकड़ो पर्वत खंड आकाश से गिरने लगे | लड़ते लड़ते
भैंस का रूप छोड़कर उसने सिंह का रूप, फिर हठी का रूप और अंत में फिर से भैंस से
निकल रहा होता है और दुर्गा उसे मार रही होती है, नवरात्रि के अवसर पर अधितर भक्तो
को प्रिय लगता है और उसी वृतांत कि प्रायः मूर्तियाँ भी बनती है |
अब आप विचार कीजिये कि यह जो देवी के श्वास
योद्धाओं का रूप धारण कर लेते , उसके हूँ कहने से ही एक असुर सेनापति कि मृत्यु हो
गई, महिषासुर के प्रचंड वायु के वेग से पर्वत के सैकड़ो दुकड़े उड़े, उसने भैंस, शेर, हाथी आदि का रूप धारण
किया, देवी के पांव टेल पृथ्वी दबी जा रही थी, सातों पातळ क्षुब्ध हो उठे, ये सब
वर्कि अजूबे के सिवाय क्या महत्व रखते है | किन्तु यह भी सोचिएकी असुरो कि ये कई
अरब सेना और करोड़ रथ ठहरे कहाँ होंगे ? स्पष्ट है की ये सब बातें गलत, असत्य और
अमान्य है |
दुर्गा सप्तशती में लिखा है कि पूर्व
काल में शुम्भ और निशुम्भ नामक असुरो ने जब इंद्रा से तीनो लोको का राज्य छीन लिया
था तो देवताओं ने हिमालय पर जाकर ‘विष्णुमाया’ कि स्तुति की | उस समय पार्वती जी
के सरी-केश से एक देवी का नाम अम्बिका देवी हुआ | इस देवी ने ‘हूँ’ किया तो असुरों
कि सेना का मुख्य असुर भस्म हो गया | यह हिमालय पर बैठी थी तो असुरों कि सेना को
आते देखकर देवी को क्रोध आया और इनका मुख काला पद गया और वहां से तुरंत विकराल
मुखी ‘काली’ देवी प्रकट हुई | उसकी जीभ लपलपाने वाली थी | वो सबका भक्षण करने लगी
| वे अंकुशधारी महावतो, योद्धाओं और घंटासहित कितने ही हाथियों तथा घोड़ो को एक ही
हाथ से पकड़कर मुंह में डाल लेती और चबा डालती | इन्होने बहुत असुरो को मार डाला |
अब ऊपर लिखे ये सारे वृतांत जो दिए है, ये बिलकुल ही भ्रामक मालूम होते है इसके बजाए यदि ये कहा
गया होता कि ‘वो देवी चीनी या खांड के बने हाथी, घोड़े और महावतो को खा जाती थी तो
वह अच्छा होता |’ चलो उससे मनोविनोद तो हो ही जाता और बात संभव तो मालूम होती |
ये सभी वृतांत के बारे में यदि
देखे तो ये काल्पनिक व रूपक के रूप में ही दर्शाया गया है | अब आप ही विचार करे कि
ऐसी देवी के श्वास से योद्धायें तैयार हो सकते है ? ब्रह्मा विष्णु शंकर के तेज से
कोई देवी प्रकट हो सकती है ? तो हम आपको
यही बताना चाहते है कि आज के युग में बुद्धिशाली, शास्त्रज्ञानी, विद्वान बहुत है,
परन्तु उन सबमे काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार आंशिक रूप में है ही है | तो ये
पांचो विकारो का खत्म करने के लिए ही परमात्मा कि शक्ति कि आवश्यकता पड़ती है और
उसकी शक्ति कि उपासना से ही शिव शक्तियाँ प्रकट होती है | जिसका नाम देवियों के
रूप में जाना जाता है | उनमे भी दुर्गा को विशेष रूप से मानते है, क्य्योंकी
दुर्गा माना दुर्गुणों को नाश करने वाली तो इस नवरात्रि के शुभ अवसर पर आप भी अपने
में न दिखने वाले असुर के रूप में जो ये विकार छिपे है, उनसे मुक्त होने के लिए
व्रत करे और अपने जीवन में परमात्म शक्ति द्वारा देवत्व को धारण करने की शक्ति
प्राप्त करे | तभी आपके जीवन में नवसंचार होगा और नवयुग आएगा | इसी भावना से
नवरात्रि उत्सव को यादगार रूप में मनाया जाता है तो आइये हम सभी अपने में निहित
बुरे रुपी महिषासुर को ख़त्म करे और देवत्व का आगाज करे |
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