आज की दुनिया मे बहुत- से ऐसे बच्चे है जो एकल
मात-पिता (सिंगल पेरेटिंग)का दंस झेल रहे है | इसका अर्थ यह की उन्हें माता पिता
दोनों का नहीं वरन दोनों में से एक का, या तो माता का या पिता का ही प्यार-दुलार
नसीब होता है | इसके कई कारण हो सकते है जैसेकि दोनों में से एक की किसी दुर्घटना
में या गम्भीर बीमारी में मौत हो जाए या विवाह विच्छेद होने के कारण दोनों में से
कोई एक दूसरी शादी कर ले या अलग रहने लग जाए | आपसी विवाद के कारण, बिना तलक भी
दोनों में बहुत दुरी हो जाए या एक छोड़कर चला जाए आदि-आदि | भाग्यशाली बच्चे वो
माजे जाते है जिन्हें दोनों का प्यार दुलार पालना मिले |
रूहानी मात-पिता से सम्बन्ध विच्छेद
अगर आध्यात्मिक द्रष्टि से देखा जाए तो सारी
मानवता , इस समय एकल मात-पिता (सिंगल पेरेटिंग) का दंस झेल रही है | इसी कारण
मनुष्यों का संतुलित विकास नहीं हो पा रहा है | किसी के व्यक्तित्व में कोई एक कमी
रह जाति है तो दूसरे के व्यक्तित्व में कोई दूसरी | हर कोई तन-मन-धन और जन से
आधे-अधूरे सुखो के साथ उम्र की पगडंडी पर आगे बढ़ रहा है | इसका मूल कारण यह है कि
संसार के लोग अपने एकल मात-पिता को ही अपना सबकुछ मान बैठे है और अपने पारलौकिक
मात-पिता, रूहानी मात-पिता से उनका सम्बन्ध विच्छेद हो चुका है
आत्म्हीनता का शिकार क्यों ?
हम जानते है की बच्चे के शरीर के निर्माण में
माता पिता की शक्तियाँ लगती है परन्तु उसकी आत्मा का पिता कौन ? यह सही है कि माता
पिता के योगदान बिना शरीर का विकास नहीं हो सकता लेकिन क्या आत्मा के पिता के
योगदान बिना, आत्मा के गुणों का विकास हो पा रहा है ? आज मानव आत्महीनता का शिकार
क्यों है? उसमे विश्वास डगमगाता क्यों है ? वह आत्मा के विषय में अनभिज्ञ क्यों है
? इन सबका मूल कारण यही है कि आत्मा को करंट देने वाला, आत्म-विश्वास बढ़ने वाला,
आत्मा को जागृति देने वाला पिता उसे प्राप्त नहीं है |
जैसे लौकिक जीवन में माता और पिता के कर्तव्यों
में बंटवारा होता है | माँ से बच्चे को घर के अन्दर की सुख-सुविधाएँ मिलती है और
पिता घर में बहार उसकी पढाई, खेल-कूद, नौकरी आदि के लिए प्रयासरत रहता है | पिता
घर से बाहर जाकर कम कर लाता है और माता उस कमाए हुए धन को, घर में बैठकर बच्चो की पालना में लगाती है | इसी प्रकार, शरीर में
मात-पिता और आत्मा के मात-पिता के कर्तव्यों में भी बंटवारा है | शरीर के मात-पिता
लौकिक सुविधाएँ बच्चे को देते है परन्तु इस लोक से परे की या अपनी पहुँच से परे की
उपलब्धियों के लिए तो वे भी उस पारलौकिक सत्ता का ही मुँह देखते है |
लौकिक पिता देता दावा, पारलौकिक पिता देता
स्वास्थ्य
मान लीजियें, बच्चा बीमार पड़ गया | पिता अच्छे-से
आची दावा, चिकित्सक,हॉस्पिटल का प्रबंध करेगा फिर भी यदि स्वास्थ्य में सुधार नहीं
दिख रहा है तो मुँह ऊपर करके कहेगा – हे परमपिता, मेरे पुत्र की रक्षा करना |
पुत्र पूछता है – पिताजी, क्या आप मेरे रक्षक नहीं है ? पिताजी कहते है – पुत्र,
मेरे हाथ में दावा देने की शक्ति तो है परन्तु स्वास्थ्य उसके हाथो में है |
निरोगी काया देने की शक्ति उसके पास है | तो देखिये, बच्चे को जरुरत तो पारलौकिक पिता की भी है
अच्छे स्वास्थ्य के लिए परन्तु हमने उसे बता ही नहीं रखा उस पारलौकिक मात- पिता के
बारे में | हम खुद भी तो उसे नहीं जानते इसलिए उइसके होते हुए भी, उसकी नेमतो से
वंचित है और शारीरिक कष्टों को, रोगों को, अक्षमताओं को झेल रहे है | सारी मानव
जाति रोगों से पीड़ित है क्योंकि हम सब केवा लौकिक माता-पिता द्वारा पोषित है और
पारलौकिक मात-पिता के कंचन काया के वरदान अर्थात सदा स्वास्थ्य रहने के वरदान से
वंचित है |
लौकिक पिता देता पुस्तके, पारलौकिक देता
स्मरण शक्ति
इसी प्रकार, बच्चे की शिक्षा के लिए लौकिक
मात-पिता महंगी पुस्तके,महंगा शिक्षा संस्थान, महंगे टियुशन आदि का प्रबंध कर लेते
है परन्तु यदि बच्चे के मन में एकाग्रता का, स्मरण-शक्ति का, बौद्धिक क्षमता का
आभाव है तो भी मात-पिता को वो सर्वोच्च पिता ही याद आता है और वे प्रार्थना करते
है – प्रभु, हमारे पुत्र को सद्बुद्धि दो, ग्रहण करने की और पढाई में सफलतापूर्वक
आगे बढ़ने की शक्ति दो | है ना आश्चर्य की बात ! बच्चे को ऐसे एकल मात-पिता प्राप्त
है जो पढाई के लिए साधन- सुविधाए तो जुटा सकते है परन्तु उसकी आत्मा की ग्रहण करने
की, स्मरण करने की शक्ति बढ़ाने का कोई उपाय उनके पास नहीं है | लौकिक माता –पिता भी
जानते है कि बच्चे के शैक्षिक सफ़र में यदि पारलौकिक का सहयोग मिल जाए तो सोने में
सुहागा हो जाए
पारलौकिक की देन – धंधे में निर्द्वन्द्व
स्थिति
पढ़ लिख कर जब बच्चा नौकरी या व्यापर में लगने का
मन बनता है तो भी केवल सांसारिक मात-पिता की मदद से काम नहीं चलता | अपने भाग्य को
चमकाने लिए, किस्मत के बाद द्वार खोंले के लिए, धंधे-नौकरी में उच्च स्तर पाने के
लिए वह फिर उस पारलौकिक पिता की मदद की ओर ताकता है | कार्य कोई भी हो, उसमे निर्द्वन्द्व
मनः स्थिति तथा संतुष्टता और प्रसन्नता उस पारलौकिक पिता की रहनुमाई से ही प्राप्त
होती है _ यदि कार्य में तनाव हो तो ऐसा कार्य, कम कर खिलने के बजाये हमें ही खाने
वाला बन जाता है | आजकल छोटे-छोटे धंधो में भी बड़े-बड़े तनाव इसी बात की ओर इंगित
कर रहे है कि लौकिक मात-पिता का धंधे में निश्चिन्तता का वरदान मिले वे प्रयास
अपूर्ण है | इस अधूरी प्राप्ति की पूर्णता तब हो, जब हम पारलौकिक से विच्छेद हुए
सम्बन्ध पुनः जोड़े |
तन पोषित,मन कुपोषित
हर माता पिता अपनी सन्तान को बीसों नाखूनों का
जोर लगा कर अच्छे से आचा देने की कोशिश करते है, बावजूद इसके, बच्चे गलत रस्ते पर
चल पड़ते है, अपराध करने लगते है | उनका खानपान बिगड़ जाता है | वे असामाजिक कृत्यों
में लिप्त हो जाते है | माता-पिता को घर से निकल देते है | उनका धन-सम्पति हड़प
लेते है तब माता पिता के मन में प्रश्न उठता है – हमने तो कोई कमी नहीं छोड़ी, फिर
भी इनके कर्म ऐसे क्यों है ? कारण यही कि आपने केवल तन का पोषण किया परन्तु मन
कुपोषित ही रह गया | आपने केवल तन को धोया पर मन पर मेल की परत-दर परत चढती ही चली
गई | आपने पंद्रह जेबों वाली जिन्स पहने परन्तु मन की फटी जेब से से सरगुन और
शक्तियाँ, बढती उम्र के साथ निकल गई |
भगवन ने कहा था – तन को तुम सवांरना, मन को मई
सवारुन्गा इसीलिए श्रीमदभगवतगीता में उनका महामंत्र है – ‘मनमनाभव’ अर्थात मन मेरे
में लगा दो | परन्तु इस अभागी मानव जाति से यही भूल हो गई कि इसने इस मन को
मनमनाभव नहीं किया | यही कारण है कि उजले तन के भीतर काला मन भी है, जिसमे
हिंसा,द्वेष,रीस, इर्ष्या, प्रतिशोध,बराबरी,शोषण,अन्याय,अत्याचार,अनुशासनहीनता,अमर्यादा,असयंम,
अनिद्रा,दू:स्वप्न, दुश्मनी,अहंकार झूठ,पक्षपात, कर्तव्यहीनता , आलस्य,कामचोरी,रिश्वतखोरी
आदि-आदि भरे हुए है |
सर्वागीण विकास का युग पुनः लौट रहा है
वो संसार, जिसमे मानव जाति ने सम्पूर्ण सर्वागीण
सुखो को पाया था, केवल शास्त्रों और पुरानो की लिखत बनकर रहा गया है, जिसे हम
सतयुग,कृतयुग,आदियु,स्वर्णयुग,देवयुग,आदि नाम देते है | उस युग में श्रीलक्ष्मी और
शिर नारायन जैसे दिव्य मानव – तन की बीमारी, दुर्घटना,अकले मृत्यु, तनाव, कटुता,
मानसिक द्वन्द प्राक्रतिक विपदा आदि से पूर्ण मुक्त थे | उन्हें लौकिक के साथ
पारलौकिक का वारसा भी प्राप्त था | इस कारण वे अटल,अखण्ड,निर्विघ्न स्वराज्य के
मालिक थे
कहा जाता है, इतिहास अपने आपको फिर-फिर से
दोहराता है | जो बिट जाता है, वह पुनः लौटकर आता है जैसे सूर्य अगली प्रातः पुनः
उदय होता है उसी प्रकार, परमात्मा पिता द्वारा रचित सर्वागीण और स्थाई विकास का वह
युग पुनः लौटकर बस आने वाला ही है, उसी को वापिस लाने के लिए भगवान् धरती पर पुनः
अवतरित हुए है और सर्व मानव जाति को एकल के बजाये डबल पेरेंटिग का अनुभव करा रहे है
| लौकिक मात पिता के प्यार और वर्से के साथ-साथ, अपना पारलौकिक प्यार और वारसा भी
प्रदान कर रहे है |
आइये! हम डबल पेरेंटिंग अर्थात दोनों मात-पिताओं
का सुख लुटे | लौकिक के साथ-साथ पारलौकिक से भी नाता जोड़ ले | उस पारलौकिक पिता का
दिव्य नाम शिव है उनका रूप ज्योतिर्बिंदु है | उनका धाम _ परमधाम है वे सर्व गुणों
के सागर है और हम मनुष्यात्माओं से उनके सर्व रिश्ते है यथा माता पिता, बंधू, सखा
स्वामी ..............| वे जन्म-मरण रहित है परन्तु एक साधारण वृद्ध मानव पिताश्री
ब्रह्मा के तन में प्रवेश होकर सर्व सम्बन्धो का सुख मानव जाति को प्रदान करते है
| जब वे धरती पर कर्तव्य अर्थ अवतरित होते है उस काल को पुरुषोत्तम संगमयुग कहा है
| वही युग अब चल रहा है | आज तक हमने जो पाया,उसमे और भी वरदानो को जोड़कर वे आत्मा
को सम्पूर्णता प्रदान करने के लिए वचनवद्ध है | तो देर मात कीजिये, एक से नहीं,
दोनों पिताओं से अधिकार प्राप्त कर, पद्मापदम भाग्यशाली बन जाइए |
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