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ब्रह्मा बाबा द्वारा युवा पीढ़ी का परिवर्तन



18 जनवरी,1969 को पिताश्री पञ्च-भौतिक देह को त्याग कर अव्यक्त हुए थे | अतः यह

तिथि प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालयके इतिहास में बहुत ही महत्वपूर्ण तिथि है | स्वाभाविक है कि इस ईश्वरीय विश्वविद्यालय के सभी ज्ञान-केंद्र यह दिन ईश्वरीय-स्मृति दिवस के रूप में मनाते है | परन्तु हम कोई साल में एक ही बार सी दिन पिताश्री को याद करे, ऐसा नहीं है बल्कि यहाँ तो पिताश्री के आदेश-निर्देश से ही समस्त दैनिक कार्य चल रहे है और इस कार्य को संपन्न करने हेतु मार्ग-प्रदर्शना के लिए वे अव्यक्त रूप में अर्थात दिव्य रूप में हमारे बीच पधारते भी है | हमारा उनसे संपर्क बना ही हुआ है और सी ईश्वरीय विश्वविद्यालय द्वारा सतयुगी स्रष्टि की पुनः स्थापना के पुन्य कार्य के कर्ता-धर्ता अभी भी परमपिता शिव तथा पिताश्री प्रजापिता ब्रह्मा ही है | केवल इतना ही हुआ है कि कि स्थूल देह का विसर्जन करके पिताश्री अब सूक्ष्म,दिव्य अथवा अव्यक्त रूप में इसे अधिक तीव्र गति से संपन्न कर रहे है |

 

पवित्र बनो योगी बनोका युग-परिवर्तनकारी नारा

 

पिताश्री का जीवन तो दिव्य गुणों की एक असीम और अनंत खान है | उन्होंने युवा पीढ़ी को और विशेष तौर पर कन्या-वर्ग के जीवन को ज्ञान से संजोने में तथा योग द्वारा उज्ज्वल एवं उजागर करने में काफी परिश्रम किया | इसका ही फल है कि आज प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय के अति विस्तृत कार्य-क्षेत्र में प्रायः जतने भी समर्पित जीवन वाले भाई-बहने सम्पूर्ण रूप से इसी ईश्वरीय सेवा में तत्पर है, वे या तो युवक और युवतियाँ ही है या पहले-पहल जब इस कार्य-क्षेत्र में उन्होंने जीवन को जुटाया था तब वे युवा पीढ़ी के ही थे | आज हम देखते है कि युवा पीढ़ी का असन्तोष अथवा विद्यार्थियों द्वारा उग्र आन्दोलन समाज के लिए एक बहुत बड़ी समस्या बन गई है | पिछले कुछ वर्षो में कई देशो में विद्यार्थी आन्दोलनों ने राजनितिक क्षेत्र में भी काफी उथल-पुथल की है | यह सर्व-विदित है कि आज का युवक अध्यात्मिक ज्ञान में कम रूचि रखता है और फैशन,टी० वी०., सिनेमा तथा नशीले और रसीले पदार्थो के सेवा उसे अधिक आकर्षित करते है | उसके स्वाभाव में उग्रता और तनाव बने ही रहते है और रोष तथा असंतोष समाये ही रहते है | अनुमान लगाया जा सकता है  कि यह चीज समयान्तर में कितनी खतरनाक सिद्ध हो सकती है | अतः यदि इस प्रष्ठ भूमिका से देखा जाए तो समझ में आ सकता है कि पिताश्री ने नवयुवको और नवयुवतियों को पवित्र बनो और योगी बनोका युग-परिवर्तनकारी नारा देकर; सतोगुणी,पावन एवं सुखी समाज की स्थापना का झंडा थमाने  का जो कार्य किया, उसमे कितनी दूरदर्शिता,नीति प्रज्ञा एवं कल्याण की भावना भरी है |

 

नई पीढ़ी,नई दुनिया के निर्माण- कार्य में तत्पर

 

आज हरेक राजनीतिक पार्टी और हरेक सामाजिक एवं शैक्षणिक संस्था चाहती है कि युवा वर्ग, जिसे कि नया रक्त कहते है, देश के कार्यों में अधिक जिम्मेवारी से भाग ले और देश के भविष्य को उज्ज्वल बनाये | परंतू हो रहा है इसके विपरीत ही | आज के अधिकांश युवक तो तोड़-फोड़ में लगे है और जोश तथा आक्रोश या हड़ताल के जंजाल में जकड़े है | अतः कमाल ही तो है कि काले युग (कलियुग) के असन्तोष,असहिष्णुता,अनुशासनहीनता और आसुरीयता के इस दौर में बाबा ने इसी वर्ग के लोगो को आस्तिकता का अमृत पिला कर, उन्हें योग के विधि-विधान में इतना तो परिपक्व कर दिया है कि आज न केवल उनकी अपनी द्रष्टि-वृत्ति और स्थिति-कृति उच्च तथा अनुकरणीय हो गई है बल्कि इस चीज की चाश्नी उन्हें इतनी प्रिय लग गई है और इस सर्वोत्तम कार्य की धुन ऐसी सवार हो गई है कि वे दूसरो के लिए भी प्रभु-प्रीति एवं पवित्रता का पथ-प्रदर्शन करने के कार्य में तथा नै दुनिया के निर्माण में दिन दुगुनी और रात चौगुनी मेहनत कर रहे है |

 

जोश वालो को दिया होश

 

पिताश्री कहा करते कि जीवन का यही समय है जब नवयुवक सही मार्ग-प्रदर्शना न मिलने के परिणामस्वरूप अपने जीवन को दाग लगा बी बैठते है | वे कहते थे कि विद्यार्थी-जीवन यों तो जीवन का सर्वश्रेष्ठ भाग है क्योंकि इस काल में उनकी बुद्धि में सांसारिक कार्य-व्यापार की चिंताएं नहीं होती परन्तु यदि इस जीवन-काल पर पूरा ध्यान न दिया जाए तो युवक अज्ञानान्धकार-कूप एवं विकार-गर्त में जा गिरते है | अतः पिताश्री के पास जब कभी भी इस उम्र का कोई भी व्यक्ति मिलने आता तो वे ऐसा मानकर उसकी अवहेलना न करते कि अभी तो यह नवयुवक अथवा बच्चा है, अभी तो इसके खाने और मौज मनाने के ही दिन है, अभी तो यह जवानी की मदहोशी में क्या ज्ञान सुनेगा बल्कि वे उसे पिता-तुल्य स्नेह देकर, उसे ईश्वरीय ज्ञान का महत्व दर्शा कर, उसकी बुद्धि में ज्ञान का उजाला लाकर तथा उसे प्रभु-प्रेम का प्याला पिला कर, उसके जीवन को एक नया मोड़ दे देते | पिताश्री कहा करते कि नया रक्त तो सतयुग में देवी-देवताओं ही का होता है | आज तो बाल-वृद्ध सभी का रक्त वास्तव में पुराणी पीढ़ी ही का रक्त है क्योंकि अब कलियुग का काला दौर चल रहा है | परन्तु वे युवा पीढ़ी के तथा छोटे बच्चो के उद्बोधन-कार्य को पूर्ण महत्व अवश्य देते | इस प्रकार, जोश वालो को होश देकर तथा स्वाभाव की गर्मी वालो को देश के गौरव और अध्यात्म की गरिमा समझा कर वे उन्हें एक नया जीवन देते और उसमे नयुआ उल्लास भर देते |

 

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