Skip to main content

Translate

 आप हिम्मत का एक कदम बढाओं तो परमात्मा की सम्पूर्ण मदद आपके साथ होगी !

मन सताप हरने हेतु मानव मसीहा का उदय



ब्रह्मा बाबा जिनके अव्यक्त आरोहण को 18 जनवरी 2015 को 46 वर्ष पुरे हुए, का साकार जीवन भी अद्वितीय विशेषताओं से भरा हुआ था | निःसंदेह, इश्वारिय्य ज्ञान तो उनके मुखरविंद से शिव बाबा ने दिया परन्तु उस ज्ञान का प्रैक्टिकल स्वरुप बनकर, उसको जीवन के सांचे में ढलकर, उसको सार, विस्तार और व्यव्हार का रूप देकर ब्रह्मा बाबा ने ही हमारे सम्मुख रखा | वे ज्ञान के केवल एक प्रवक्ता ही नहीं थे बल्कि जैसे मिश्री मिठास-स्वरुप होती है वैसे ही वे भी ज्ञान-स्वरुप थे | वे योग के कोई प्रचारक नहीं थे बल्कि योगी जीवन के एक साक्षात् उदहारण थे | ‘योगी जीवन कैसा होना चाहिए ?’ – वे केवल इसकी व्याख्या नहीं करते थे बल्कि अपने जीवन को योगमय बना दुसरो को भी धरना की आवश्यकता पर बल ही नहीं देते बल्कि उनका जीवन दिव्य गुणों का एक ताजा गुलदस्ता था | ‘ मनुष्य को अपना ता, मन, धन सेवा में लगाना चाहिए’ – वह केवल ऐसा कहा नहीं करते थे बल्कि उन्होंने इसे करके दिखाया | उनका हर संकल्प सेवामय था और अंतिम स्वांस तक उन्होंने सेवा ही की और वह भी ऐसी कि जैसा कोई कर नहीं सकता |

शिव बाबा ने तो मनुष्यात्माओं को नए विश्व के निर्माण के लिए नया ज्ञान अथवा नया जीवन – दर्शन दिया परंतू जन्म-जन्मान्तर से भूली-भटकी और दुर्बल हुई आत्माओं को उस ज्ञानामृत रस से सिचने का कर्तव्य ब्रह्मा बाबा ने अथक और अदम्य रूप से किया और इस तरह कि जैसा एनी कोई नहीं कर सकता | शिव बाबा ने यह समझाया कि पवित्रता ही आत्मा का स्वधर्म है और है और कि कितने भी सितम ढाये जाएँ परन्तु इस स्वधर्म को न छोड़ना इस पवित्रता रूप महाव्रत में आत्माओं को कायम-दायम (स्थायी रूप से स्थिति) करने का एक अति महान कर्तव्य ब्रह्मा बाबा ने ही निभाया | आज के दूषित कलयुगी वातावरण में जबकि सभी धर्म और सभी ग्रन्थ यह कहते है कि स्त्री-पुरुष में वासना भोग का सम्बन्ध स्वाभाविक है , आदिकाल से चला आया है और ईश्वर-सम्मत है और राम एवं कृष्ण की भी मर्यादा के अनुकूल है, उस वातावरण में नव-विवाहित पति-पत्नी के बीच भी धर्म और आने वाले नवयुग की मर्यादा को स्थापन करना एक ऐसा कठिन मामला था जिसे ब्रह्मा बाबा ही ने हल किया | ऐसी स्थिति में जब वर और वधु के माता-पिता,सास ससुर और भाई-बान्धवसब उनको पुराणी परिपाटी की पट्टी पढ़ते, तब बाबा ही कि यह कमाल थी कि वे उन्हें काम-ज्वर से पीड़ित न होने देते | वे गृहस्थ की नाव  में बैठी उन आतामों को योग का ऐसा चप्पु  हाथ में दे देते कि उनकी नाव आगे सुरक्षित  रूप से बढती जाती | वे उन्हें ऐसा और इतना प्यार दे देते कि उन्हें प्यार  का आभाव कभी भी महसूस न होता और दैहिक प्यार एक=दुसरे की ओर न खीचता | वे उन्हें ऐसे नशे का प्याला पिला देते कि जिससे उन्हें जवानी का नशा न चढ़कर रूहानी नशा चढ़ जाता | वे उन्हें लोक – कल्याण अथवा जन सेवा के कार्य में ऐसा व्यस्त कर देते कि उनकी गृहस्थ भावना सेवा-कामना में परिवर्तित हो जाती | इसका फल यह निकलता कि लोग जिस कार्य को असंभव मानते थे, वह केवल बाबा के प्यार-पुचकार से, उनके पत्राचार से, उनकी प्रेरणा और उपहार से सम्बह्व सिद्ध हो जाता |

मुझे याद है कि आज से 25 वर्ष पहले एक कन्या और एक युवक का सम्बन्ध, जब दोनों के माता-पिता के आग्रह के परिणामस्वरुप, गृहस्थ-मर्यादा में जोड़ा जाने वाला था तो बाबा ने उन्हें यह पत्र लिखकर भेजा कि वे ऐसा पवित्र दाम्पत्य (युगल) जीवन जीकर दिखायेंगे कि जिसके आगे सन्यासी भी झुक जायेंगे | इस पत्र से उन्हें ऐसी प्रबल प्रेरणा मिली, पवित्रता में ऐसा उनका मन जमा कि उन्होंने असंभव को सम्बह्व कर दिखाया | केवल एक पत्र ही से नहीं, बाबा ने जो वर्षो तक उन्हें निरंतर प्यार दिया, उन्हें सेवा का उपहार दिया, वह एनी कोई नहीं दे सकता | उनकी तथा उन जैसे अनेके युगलों की जिम्मेवारी लेकर कदम-कदम पर उन्हें मार्ग-प्रदर्शना देना, उनका उत्साह बनाए रखना, उन्हें मंजिल की ओर आगे बढ़ते चलना, उन्हें अनेक प्रकार के आंधी तुफानो से पार करना, उनके जीवन को नीरस न होने देना, उन्हें एक ऐसा लक्ष्य देना कि जिसमे वे निरंतर लगे रहे और उनके कुल जीवन को योग के सांचे में ढाल देना, यह कोई आसन काम नहीं है | ऐसे सैकड़ो और हजारो विवाहित, अविवाहित और नवविवाहित लोगो को पवित्रता के पद पर आसीन करके उन्हें लौकिक से अलौकिक बना देना एक ऐसी मेहनत का काम है कि जिसे न अन्य कोई कर सकता है और न ही कोई अपने सर पर लेगा | एक-एक वत्स पर ब्रह्मा बाबा ने जितनी मेहनत की, जितना ध्यान दिया, जितना प्यार बरसाया और अपना जितना तन, मन, धन लगाया, वह संसार के इतिहास में न आज तक किसी ने किया है और न कोई कर सकता है जिन्होंने उनके इस कर्श्मे को देखा है, जिनका अपना जीवन उस प्यार से सींचा गया है, केवल वे ही इस सौभाग्य की साक्षी दे सकते है अन्य जो आज थोड़े समय के लिए सम्मेलनों और उत्सवों में उन वत्सो के संपर्क में आते है, जिनमे बाबा ने ज्ञान-योग धारणा सेवा त्याग रुपी पंचामृत भर दिया है, वे उन वत्सो के ज्ञान या प्रेम या धारणा या सेवा आदि से प्रभावित तो होते है परन्तु शायद वे सिका अंदाजा नहीं लगा सकते कि ब्रह्मा बाबा ने 63 जन्मो से थकी-मांदी और गुमराह हुई आत्माओं को कैसे राह पर लगाकर, उनके विकारो की तपत बुझाकर उन्हें नै दुनिया का आदर्श बनाने की अवर्णनीय मेहनत की होगी | 18 जनवरी विश्व शांति दिवस पर ऐसे आध्यात्मिक पुरोधा को शत:शत: नमन |

Comments

Labeles

Show more

Followers

Total Page Views