द्वारपाल से देह
अभिमान और विकारो के वश होने के कारण मनुष्य आत्मा पर विकार्मो और पापो का बोझा
बहुत है | 63 जन्मो से विकारो के वश कर्म और व्यवहार करते हुए आत्मा अपनी चमक खो
चुकी है, वह धूमिल और पतित हो चुकी है | विकारो के वश ही आत्मा शक्तिहीन,कांतिहीन
और तेज विहीन हो चुकी है | इसके फलस्वरूप छोटी-छोटी समस्याओं और परीक्षाओं में
अधिकांश आत्माएं मुन्झतीऔर घबराती रहती है | सामना करने, समाने और निर्णय करने की
शक्ति, अपवित्रता के कारण ही कम हो गई है, अतः आत्मा को सशक्त बनाने और उसे चढ़ती
कला की ओर ले जाने के लिए सर्व शक्तिवान परमात्मा के गहन सान्निध्य की परम
आवश्यकता है |
पतित पावन आये है
समस्त मानव आत्मा के
लिए यह ईश्वरीय शुभ सन्देश है कि अभी पतित-पावन परमात्मा शिव स्रष्टि को पावन
बनाने के लिए ब्रह्मा तन में अवतरित हुए है और वे पिछले 75 वर्षो से ज्ञान-योग की
अग्नि से आत्माओं को तपाकर उनकी बुराइयों को दूर कर रहे है | लाखो ब्रह्मा वत्स उस
तारणहार शिव को जान और पहचानकर राजयोग की साधना द्वारा आत्मशुद्धि और पापो से
मुक्ति की साधना में लगे हुए है | अब समय है, जब संसार की शेष आत्माओं को भी
मुक्तेश्वर, सद्गतिदाता,पापकटेश्वर परमात्मा शिव को अवश्य ही जानना और पहचानना
चाहिए और साथ ही ब्रह्मा और ब्रह्मा और बरमा वत्सो के सान्निध्य में राजयोग और
आध्यात्मिक ज्ञान की साधना द्वारा निज आत्मा के परित्राण और कल्याण में संलग्न हो
जाना चाहए | आज इस कलियुग में हर मानव आत्मा विकारो के वश दुखी-अशांत और भयग्रस्त
है | सर्व समस्याओं की जड़ देह अभिमान है | अज्ञान वश मनुष्य भोग वासना में
सुख-शांति ढूँढ रहा है,परन्तु उसे नहीं मालूम की यही दारुण दुखो का और पतन का
मार्ग है | इसलिए सर्व आत्माओं को अब आत्म निश्चय करते हुए पतित पावन परमात्मा शिव
से बुद्धियोग जुटाने की आवश्यकता है | इस राजयोग की अग्नि से ही आत्माओं पर चढ़ी
पापो की कट धुल सकती है और आत्मा निर्मल बनाकर सच्ची सुख-शांति की अनुभूति कर सकती
है
ब्रह्मा वत्सो अभी New post
सम्पन्नता का समय है
राजयोगी ब्रह्मावत्सो के लिए परम योगेश्वर परमात्मा शिव का यही सन्देश
है कि अब सतयुग की स्थापना का समय समीप आ रहा है इसलिए साधारण पुरुषार्थ नहीं
तीव्र पुरुषार्थ की आवश्यकता है |जब तक राजयोगी आत्माएं सम्पूर्ण पवित्र बनाकर
सर्वगुण संपन्न नहीं बने, तब तक स्वर्णिम संसार की स्थापना नहीं हो सकती है |
इसलिए समय का संकेत यही है कि हर आत्मा तीव्र पुरुषार्थी बने | आत्माओं पर चढ़ी हुई
जन्म जन्मान्तर के पाप की कट साधारण योग साधना से मिटने वाली नहीं है, इसलिए अब
साधारण योग के बदले ज्वालामुखी योग अर्थात शक्तिशाली योग साधना की आवश्यकता है और
तभी शीघ्र पापो से मुक्त होकर और सम्पूर्ण पावन बनकर राजयोगी आत्माओं सम्पूर्णता
और सम्पन्नता की और अग्रसर हो सकेगी |
ज्वालामुखी योग क्या
है ?
सर्व शक्तिवान परमात्मा के तेज का वर्णन गीता में हजारो सूर्यों से भी
अधिक तेजोमय अर्थात ज्वालारूप के समान किया गया है | बात स्थूल अग्नि या ज्वाला की
नहीं है, बल्कि यह ज्वाला सूक्ष्म और दिव्य है | यह आध्यात्मिक शक्ति की ज्वाला का स्त्रोत ज्ञान और योग की
अग्नि है | जब आत्मा आध्यात्मिक ज्ञान में निष्णात होकर, उसे जीवन में आत्मसात कर
लेती है और स्वयं मास्टर ज्ञान सूर्य बनकर मन और बुद्धि द्वारा निज आत्मा का
सान्निध्य उस ज्ञान सूर्य और परमशक्ति के स्त्रोत परम-योगेश्वर, और महाकालेश्वर
परमात्मा के साथ कर देती है और एकनिष्ठ होकर सम्पूर्ण समर्पण और अटूट लगन के साथ
परम योगेश्वर परमात्मा के साथ उनके स्नेह में मगन हो जाती है, तो एक आध्यात्मिक
शक्ति का व् दिव्य ज्वाला का उदय होता है कालो के काल महाकाल परमात्मा उस योग
ज्वाला द्वारा ही, आत्माओं के पापो को दग्ध कर देते है न सिर्फ पाप, बल्कि इस योग
ज्वाला में हर दुःख, चिन्ता, समस्याएं और आने वाले अनिष्ट भी स्वाहा हो जाते है |
जब आत्मा बीज रूप अवस्था में स्थित होकर परमात्मा की सर्व शक्तियों को एक बिंदु पर
केन्द्रित करती है, तो एक अपूर्व ऊर्जा का शक्तिपात होता है | आत्मा की समस्त दुर्बलताएं
जैसे दूर होने लगती है और वह स्वयं को शक्ति संपन्न और तेजोमय अनुभव करने लगती है
| वह अनुभव करती है, जैसे निज आत्मा का मालिन्य और पाप धुलते जा रहे है और उसकी
आत्मा जैसे योग की ज्वाला में सोने की तरह ताप कर विकारो की खोट से मुक्त होती जा
रही है | ज्वालामुखी योग सिर्फ शक्ति का ही नहीं संतृप्ति का अनुभव कराता है | इस
अवस्था में आत्मा ऐसा महसूस करती है, जैसे उसे जो पाना था, वो पा लिया है, कुछ भी
पाना शेष नहीं है | वह संसार के आकर्षणों से बहुत दूर चली जाती है उसे दुनिया का
हर वैभव त्रण मात्र लगने लगता है |
पतित पावनी स्थिति
जब आत्मा ज्वालामुखी योग की गहन अनुभूति में होती है, तो वह स्वयं एक
दिव्य ज्योति और ज्वाला स्वरुप बन जाती है | उसके प्रकाश और प्रकाम्पनो के संपर्क
में जो भी आत्माएं जड़ अथवा चैतन्य आते है, योगाग्नि से तपाकर वह उन सबको पतित से
पावन परम योगेश्वर परमात्मा के साथ गहन सान्निध्य प्राप्त कर लेने पर आत्मा की
स्थिति में भले-बुरे, खरे-खोटे,ऊँच-नीच,स्त्री-पुरुष आदि का भेदभाव मिट जाता है और
आत्मा बिना किसी भेद के सभी का पवित्रीकरण करती चलती है |वर्तमान समय स्रष्टि के
अंत का समय है, जिसे देखते हुए परम योगेश्वर परमात्मा शिव हर आत्माओं से बार-बार
ऐसे ही ज्वालामुखी योग करने के लिए आह्वाहन कर रहे है, ताकि चैतन्य आत्माएं के
साथ-साथ प्रकृति के पांच तत्व और समूची स्रष्टि भी शीघ्र पावन हो जाए और तभी
सतोप्रधान दुनिया का प्रादुर्भाव होगा |
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