किसी ने ठीक कहा है, आदत वो रस्सा है जिसे मानव अपने हाथो
से बांटता है और फिर उसी में बंध भी जाता है | आदत की गुलामी सबसे बड़ी गुलामी है
जिससे कोई अन्य मुक्त नहीं कर सकता, स्वयं की लगन और पुरुषार्थ से ही इससे मुक्त
हुआ जा सकता है | इस कहानी याद आती है –
एक बार एक राही, जो जंगल से गुजर रहा था, रास्ता भटक गया |
रात घिरने लगी तो घबराने लगा पर दूर जलती एक रौशनी को देख उस ओर चल पड़ा |
रोशनी एक घर से आ रही थी, दरवाजा खोलकर वह
अन्दर चला गया और एक सुन्दर स्त्री को सोफे पर बैठे देखा | राही ने उसे अपनी
परिस्थिति बताई,रात भर ठहरने की अनुमति मांगी और कहा, सुबह अपने रास्ते चला जाऊँगा
|
स्त्री ने जवाब दिया, तुम जितने दिन चाहो यहाँ रह सकते हो,
तुम्हे अच्छा खाना और आराम मिलेगा, मै सिर्फ प्रतिदिन तुम्हारे शरीर पर एक धागा
बधुंगी | रही मान गया, उसे बढ़िया बिस्तर,खाना दिया गया, उसे अच्छा लगा, वह वही रूक
गया | रोज बांधा जाने वाला एक-एक धागा वही मजबूत रस्सी बन गया | एक दिन उसका मन
हुआ कि मै यहं से चला जाऊ पर वह पुर्णतः बंध चुका था | जब उसने उस औरत का असली
चेहरा देखा तो पता चला कि वह एक दायाँ थी जो अपने चंगुल में फंसा कर अनेको का अंत
कर चुकी थी, इस राही के जीवन का भी उसने अंत कर दिया | क्या आप जानते है, यह राही
कौन है और यह डायन कौन है ? राही है हम सब जो पिता परमात्मा का घर छोड़कर इस
स्रष्टि-मंच पर पार्ट बजने आये पर अपने पार्ट द्वारा दूसरो को सुख देने के के
लक्ष्य से भटक कर इस दुनिया के जंगल में भटक गए और तब मिली एक सुन्दर स्त्री जिसका
नाम है आदत | काम विकार की आदत बना ली, कोई ने क्रोध की , कोई ने लोभ की, कोई ने
अहंकार, इर्ष्या,द्वेष , नफरत की आदते बना ली, कोई ने बीड़ी,सिगरेट, तम्बाकू,गुटखा,
शराब, तथा अन्य अनेक प्रकार के नाशो की आदत बना ली | शुरू में तो इस सुन्दर स्त्री
रुपी आदत के साथ रहना, खाना अच्छा लगा पर जब इससे छूटने की इच्छा पैदा की तो पता
चला कि यह केवल ऊपर से सुन्दर पर भीतर से डायन है,इसने हमें पूरी तरह से बाँध लिया
है, इसका आदत रुपी धागा, पक्के संस्कार रुपी रस्सी में बदल चुका है | आदत रुपी
डायन कइयों के जीवन को प्रतिदिन लील रही है डायन मुक्त करने वाली एक ही शक्ति है
और वह है ईश्वरीय शक्ति, जो प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय में राजयोग के अभयस से प्राप्त होती है | इस
शक्ति से लाखो लोग इस दायाँ के चंगुल से छुटकर आनंद का जीवन व्यतीत कर रहे है |
Comments
Post a Comment