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 आप हिम्मत का एक कदम बढाओं तो परमात्मा की सम्पूर्ण मदद आपके साथ होगी !

त्याग व् सेवा की मूरत माता



     

दुनिया कहती है कि पहला प्यार कभी भी भूलता नहीं है | फिर माँ का पहला प्यार भुला कर दुनिया कैसे प्रेमी या प्रेमिका के प्यार को पहला मान लेती है ? देखा जाए तो संतान को मिल रहा है माँ का प्यार भी पहला प्यार नहीं | पहला प्यार तो सभी प्राणियों को ईश्वर से प्राप्त है | जन्म लेते ही उन्हें जीवन जीने के सारे साधन प्रकृति द्वारा उपलब्ध करा दिए जीते है |
| जो हमारी प्रथम माँ कहलाती है |

 

स असार संसार में कुछ भी निश्चित नहीं, अगर कुछ निश्चित है तो वह है माँ का बिना शर्त का प्रेम | किसी लेखक के पेन या चित्रकार के ब्रश में इतनी ताकत नहीं जो वह माँ के सच्चे समर्पित प्रेम का 50 प्रतिशत भी वर्णन कर सके | स्वामी विवेकानन्द के अनुसार, ईश्वरीय प्रेम को छोड़ कर दूसरा कोई प्रेम मातृप्रेम से श्रेष्ठ नहीं है | जवानी ढल जाती है , प्रेम कम हो जाता है,मित्रता के पत्ते मुरझा कर गिर जाते है परन्तु माँ की आशाए व् गुप्त प्रेम वैसा का वैसा बना रह कर इन सबको पीछे छोड़ जाता है | संतान उसे विचलित कर दे , फिर भी माँ का उससे प्रेम गुप्त रूप से बना रहता है + माँ कितनी भी बूढी क्यों न हो जाये, उसकी ममता, संतान के प्रति उसकी शुभ-भावना कभी बूढी नहीं होती, चाहे संतान नालायक ही क्यों न हो | बुढ़ापे में यदि पति की मृत्यु पहले हो जाए, तो पत्नी का जीवन कष्टमय हो जाता है | एक माँ चार बच्चो को पाल-पोष कर बड़ा कर देती है परन्तु वही चार बालिक वही चार बालिक अपनी बूढी माँ की सेवा करने से कतराते है | बचपन में छोटे-छोटे भाई आपस में लड़ते है की माँ मेरी है, माँ तेरी है (माँ को तुम रखो)|

छोटे बच्चे मन से बड़े होते है और बच्चे बड़े हो कर मन से छोटे हो जाते है |   

      आनाथाश्रमो से ज्यादा है वृद्धाश्रम

एक छोटा बच्चा रो-रोकर अपनी बात माँ से मनवा लेता है | वही बच्चा बड़ा होकर माँ-बाप को रुला-रुला कर अपनी बाते मनवा लेता है, चाहे मकान अपने नाम करवाना हो, बैंक में बाप के खाते में अपना नाम जुड़वाना हो या माँ-बाप को वृद्धाश्रम में भेजना हो | यही कारण है कि आज वृद्धाश्रमो की संख्या में वृद्धि हो रही है और संयुक्त परिवार समाप्त हो रहे है | आज अनाथाश्रमो से ज्यादा तो वृद्धाश्रमो हो गए है | अनाथाश्रम में वो बच्चे पलते है जिनके माँ-बाप नहीं रहे परन्तु वृद्धाश्रम में वो माँ-बाप पलते है जिनकी औलाद में सुसंष्कार व् कर्तव्यपरायणता नहीं रही | वृद्धाश्रम में जब बूढी और लाचार माँ से पूछा जाता है कि आपका बीटा क्या करता है, तो उसका जवाब होता है, डॉक्टर है या मजिस्ट्रेट है या इन्जीनियर्स है या आफिसर है या प्रोफ़ेसर है आदि | एक भी माता ऐसी नहीं मिलती जो कहे की मेरा बेटा गरीब है या अनपढ़ है | गरीब व् अनपढ़ संतान कभी भी अपने माँ-बाप को वृद्धाश्रम नहीं जाने देते है | यह पापाचार तो पढ़े-लिखे कमाऊ पूत ही करना पसंद करते है एक समय था कि गृहस्थ यह कहते हुए गर्व महसूस करता था की मै माँ के साथ रहता हूँ, फिर यह कहते सुना जाने लगा किमाँ मेरे साथ रहती है परन्तु  आज माँ को वृद्धाश्रम में जाने पर मजबूर करने वाला गृहस्थ अपनी प्रतिष्ठा बचने हेतु यह कहता है की मेरी माँ तीर्थ करने गई है या उस का यहाँ मन नहीं लगता इसलिए फलाने के पास रहती है |

              

          भगवान् का बच्चा और में बच्चा 

 

आज की पीढ़ी अपनी सगी मा को भी गैर बना रही है परन्तु एक माँ किसी गैर के बच्चे को भी सगे से बढ़ कर प्यार कर सकती है | विनोबा भावे की माँ  ऐसी ही माँ थी | एक बार उसके पड़ोस के युगल को 3-4 दिन के लिए अचानक बाहर जाना पड़ा | वे अपने 5 साल के बच्चे को विनोबा की माँ के सुपुर्द कर गए | नन्हे  विनोबा ने देखा कि माँ उस मुझे सुखी रोटी | एकान्त में विनोबा की पडोसी बच्चे को भोजन में घी लगा कर रोटी देती है और मुझे सूखी रोटी | एकान्तमें विनोबा ने माँ से यह शिकायत की तो माँ बोली कि बेटा, घी जरा-सा ही है | वह तो भगवान का बच्चा है लेकिन तू तो मेरा बच्चा है ,बता मै क्या करूँ ? विनोबा खुश हो गया और बोला, माँ , भगवान के बच्चे को किसी भी बात की कमी नहीं होनी चाहिए | विनोबा के लिए उसकी माँ ही भगवान् थी और माँ जैसे रखे, उसी में वह राजी था |

              

            कभी विमुख नहीं होती है माँ

 

माँ को सबकी पसंद का ध्यान रहता है परन्तु माँ को खाने में क्या पसंद है, इसका किसी को पता भी नहीं होता | माँ अन्न का सम्मान करती है और पति व् बच्चो के द्वारा छोड़ा गया भोजन भी खा लेती है | वह परिवार की सम्रद्धि व् सुख-शांति के लिए अक्सर उपवास रखती है और भूखे रहते हुए भी घर के सारे काम अन्य दिनों की तरह करती रहती है | घर में सबसे अंत में भोजन करने वाली माँ ही होती है | वह सबको पूछ-पूछ कर भोजन कराती है परन्तु भोजन करते हुए उसे क्या चाहिए,यह शायद ही कोई पूछता है | माँ जब देखती है कि भोजन करने वाले पांच है और भोजन चार का है,तो अक्सर कह देती है कि आज उसे भूख नहीं | कई बार उसकी इस बात को दुसरे समझ नहीं पाते जबकि माँ उस बात को भी समझ लेती है, जिसे बच्चा या उसका पति कहना नहीं चाहता | यह माँ है जो बच्चे की गलती भी अपने ऊपर लेकर बच्चे को पिता की डाट से बचाती है | यदि बच्चा बीमार है तो माँ रात भर जग कर भी सेवा करती है पिता अपे बच्चे को त्याग सकता है, भाई-बहन एक-दुसरे से नाता तोड़ सकते है, पति-पत्नी एक-दुसरे को तलक दे सकते है परन्तु माँ पाने बच्चे से कभी विमुख नहीं होती | वयस्क हो रही बेटी का सही मार्गदर्शन माँ के अलावा और कोई नहीं कर सकता | माँ अपनी बेटी के सम्बन्ध-संपर्क मी आ रहे व्यक्तियो की जागरूकता से निगरानी रखती है |

              

           अपने से पहले संतान के प्रति सोच 

 

प्रसिद्ध हालिवुड अभिनेत्री सोफिया लारेन के अनुसार, जब आप माँ बनती हो तो आप संकल्पों में कभी अकेली नहीं होती | आप अपने लिए कुछ भी सोचने के पहले अपनी संतान के लिए सोचती हो | नार्वे की सुप्रसिद्ध लेखिका श्रीमती सिग्रिड अनसेट को जब नोबेल पुरस्कार दिए जाने की घोषणा हुई तो कई पत्रकार उनके घर पर साक्षात्कार (Interview) लेने के लिए पहुचे | श्रीमती अनसेट बाहर निकली और विनम्रता  से बोली, अभी रात्रिमें आप लोगो के यहाँ आने का कारण मै समझ सकती हूँ क्योंकि अभी-अभी तार द्वारा मुझे नोबेल पुरुष्कार दिए जाने की सुचना मिली है पर खेद है की मै आप लोगो से इस समय कोई बातचीत नहीं कर सकती | सारे पत्रकार बोल पड़े , क्यों भला ? वह बोली,अभी मेरे बच्चो के सोने का समय है और मै उन्हें सुला रही हूँ | पुरस्कार मिलने की ख़ुशी तो मुझे है पर उससे भी अधिक ख़ुशी मुझे अपने बच्चो के साथ रहने और उनकी सेवा करने में मिलती है उस माँ की संतान के प्रति सेवा व्  स्नेह की गरिमा से पत्रकार अभिभूत हो गए और खली हाथ लौट गये |

             

          पहला प्यार-ईश्वरीय प्यार 

 

दुनिया कहती है कि पहला प्यार कभी भी भूलता नहीं है | फिर माँ का पहला प्यार भुला कर दुनिया कैसे प्रेमी या प्रेमिका के प्यार को पहला मान लेती है ? देखा जाए तो संतान को मिल रहा है माँ का प्यार भी पहला प्यार नहीं | पहला प्यार तो सभी प्राणियों को ईश्वर से प्राप्त है | जन्म लेते ही उन्हें जीवन जीने के सारे साधन प्रकृति द्वारा उपलब्ध करा दिए जीते है | ब्रह्मलोक का वासी शिव सुपर-माँ है जो कल्प-कल्प ब्रम्हा के शरीर का आधार ले कर अपने बच्चो को पतित से पावन बना कर पावन धाम सतयुग में भेज देता है | लौकिक परिवार में संतान को माँ का नाम,गोत्र या वंस नहीं मिलता बल्कि पिता का मिलता है परन्तु जब परमपिता शिव आकर रचना रचते हा तो बच्चो को शिवकुमार शिवकुमारी का नाम न दे कर ब्रह्मा को आगे कर देते है | बच्चे ब्रह्मा-मुखवंशावली  कहलाते है | उनका नाम ब्रह्माकुमारी या ब्रह्माकुमार के सम्बोधन के साथ पुकारा जाता है, जो कि सर्वोच्च सम्मान की बात है |

 

 

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