हम सब जानते है कि
विमान बनाना या बहुमंजिली इमारत बनाना , इसमें किसी देश की वर्षो की तकनीक, बुद्धि
का कौसा, मेहनत और पैसा प्रयोग होता है लेकिन उस विमान को बहुमंजिली इमारत से टकरा
कर, विमान और इमारत दोनों को ध्वस्त कर देने में तो पल भर का समय लगता है | बड़े शहरो
को विकसित और आबाद करना इसमें सदियाँ लग जाती है लेकिन बम गिराने की कुत्सित भावना
सेकेण्ड में उन्हें शमशान में बदल देती है
इसलिए जहाँ हम कौशल
(Skill) विकसित करने की, अच्छे इंजीनियर तैयार करने की, अधिक कॉलेज खोलने की
और शोध कार्य के लिए लैब (प्रयोगशाला) बनाने की बात करते है वहां हमें ऐसी शिक्षा
देने की राहें भी तलाशनी होगी जो मनुष्य के मन में उपजी प्रतिशोध,क्रोध,इर्ष्या
इत्यादि की भावना को समाप्त कर सके विद्यार्थियो को मानव मन में उठने वाले आवेगों
पर शोध और नियंत्रण करना भी सिखाया जाए ताकि वर्षो की उपलब्धि क्षणिक आवेग में
ध्वस्त न जो जाये |
जैसे फसल को कीड़े,
लकड़ी को दिमा, शरीर को कीटाणु और कंप्यूटर को वाइरस खा जाता है ऐसे ही मानव की
बुद्धि जिसमे काला-कौशल और सद्गुण है उसे वाईसीज(vices) नष्ट कर देते है | यदि पुल उद्घाटन से
पहले ही टुटा और टैंक पानी भरने से पहले ही बिखर गया तो किस कमी से ? देश में
सीमेंट, भवन निर्माण सामग्री और तकनीक की कमी नहीं है लेकिन इमानदारी (Honesty) कमी से टूटा | आज देश में इन्जीनियर्स की कमी
नहीं है लेकिन विश्व नव –निर्माण के लिए देश को केवल इन्जीनियर्स नहीं बल्कि
वैल्यू बेस्ड इन्जीनियर्स की आवश्यकता है
| निर्माण सामग्री कितनी भी बढ़िया हो लेकिन विचारो की श्रेणी घटिया होती तो उत्पाद
गुणवत्ता वाला कैसे होगा ?
आज जो भी सुख के साधन – भवन, वायुयान आदि धारा पर
है , वे इससे पहले कागज़ पर थे और उसके भी पहले मानव के मन में थे | जो चीज विचारो
में है वही कौशल के जरिये धारा पर आती है | यदि विचारो में इस प्रकार की मिलावट आ गई की इतना हिस्सा मेरी जेब में
आना ही चाहिए तो कोई भी चीज गुणवत्ता की कसौटी पर पूरी तरह 100 प्रतिशत खरी कैसे
उतरेगी ? सार्वजनिक उपक्रम की इकाई में प्रयोग होकर जिस पैसे का लाभ सारे देश के
लोगो को मिलता , उस पैसे का कुछ हिस्सा एक व्यक्ति की छोटी सोच के कारण उसके
परिवार के मात्र 5-7 सदस्यों को ही मिल पाटा है |
महान इंजीनियर सर मोक्षगुन्दमविश्वेश्वरय्या
हुए उनकी महानता केवल उनके कौशल और तकनीक
से नहीं बल्कि उनमे मौजूद मूल्यों से थी | उनमे से एक मूल्य यह था की वे शुद्ध
शाकाहारी थे | पूछा जा सकता कि तकनीक के विकास में शाकाहार का क्या रोल है ?
ब्रह्मचर्य, शुद्ध शाकाहारी भोजन,सत्य और अहिंसा – ये वे मूल्य है जिनसे व्यक्ति
के अन्दर निर्भयता , मनोबल , कर्तव्यपालन में ईमानदारी और अपने ध्येय पर अडिग रहने
की शक्ति आती है | इन्ही सद्गुणों के आधार पर ही हम जीवन के किसी भी क्षेत्र में
गरिमामयी सफलता प्राप्त करते है | इसलिए देश को तकनीक व् कौशल से समृद्ध बनाने के लिए मूल्य रुपी सीमेंट बहुत
जरुरी है | मूल्यों के बिना तकनीक मात्र एक ढांचा बन कर रह जायेगी |
तकनीक के ज्ञान के साथ- साथ आध्यात्मिक ज्ञान , कर्मो की गहन गति के ज्ञान
की भी आवश्यकता है ताकि व्यक्ति का बाद पड़ा तीसरा नेत्र खुले और उसे यह अहसास हो
जाए कि नाजायज तरीके से आया हुआ एक पैसा भी ब्याज सहित अवश्य ही वापस लौटाना पड़ेगा
| जितना आनंद व् ख़ुशी उस पैसे के प्राप्त होने पर नहीं मिले होंगे , जितना कि दुःख
व् पश्चाताप उसे लौटने में झेलना पड़ेगा | अतः गरीब , अमीर,अनपढ़ या शिक्षित , राजा
या नौकर , अधिकारी या चपरासी सबको कर्मो की गहन गति का विज्ञान समझना आवश्यक है और
वह उतना ही आवश्यक है जितना शरीर के लिए आक्सीजन,जल,रोटी , कपडा,माकन,शिक्षा और
स्वास्थ |
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