दुनिया में सकरात्मक चिंतन की अलग-अलग बहुत सी तकनीक
बताई गई है | हम सकारात्मक संकल्प तो निर्मित कर लेते है लेकिन उसमे ताकत नहीं
होती क्योंकि हम शायद खुद अन्दर से उसके साकार होने के बारे में विश्वस्त नहीं
होते | मै एक सकारात्मक संकल्प करुँगी कि यह यह काम हो जायेगा लेकिन साथ-साथ अन्दर
मुझे शक भी है की मेरे को नहीं लगता की ये कार्य हो पायेगा, फिर दर भी है की अगर
नहीं हुआ तो ......| फिर तो समझ लो की उस सकारात्मक संकल्प का कोई प्रभाव होने
वाला नहीं है क्योंकि उस एक सकारात्मक संकल्प के पीछे बहुत सारे नकारात्मक संकल्प
है | ऐसा सकारात्मक संकल्प कमजोर संकल्प है इसलिए बहुत जल्दी वह नकारात्मक संकल्प
का अनुसरण करने लगता है |
योग गहरे जमे हुए संस्कार,गहरी अवधारणाओं को बदल देता है |
इसमें हम संकल्प के स्तर पर काम नहीं करते बल्कि उससे भी एक कदम पीछे जाकर अपने
संस्कार पर काम करते है क्योंकि जिस प्रकार का संकर, उसी प्रकार की ही सोच निर्मित
होने वाली है |
हमारे आस-पास के लोग कुछ भी कर रहे है, हम उनको स्वीकार
कर, गुस्सा न करे , प्यार से रहे, शांत रहे लेकिन यह सहज नहीं लगता है | अपने ऊपर
मेहनत नहीं करते है तो अचानक ही अन्दर से एक दिन विस्फोट हो जाता है | हमारे अच्छे
प्रयास का यह परिणाम तुरंत तो नहीं मिलेगा की सामने वाला बदल जाये या कार्यालय में
सब एकदम प्यार से काम करे लग जाये इसलिए हमारी यात्रा रुक जाती है और हमारी पुराणी
अवधारणाओं तो तैयार पड़ी है, उनको वापिस आना मुस्किल नहीं होता | इसमें हमारा बहुत
ज्यादा नुकसान हो जाता है | हम जीवन-यात्रा पर चल रहे है , इसलिए ईधन (शक्ति) भरना
भी बहुत जरुरी है | उसके लिए जब हम सुबह के समय मौन में बैठते है तो अन्दर की
प्राथमिक जटिलताओ का समाधान करने का सोचे | फिर जो बाहर के विरोधाभास है वो तो
अपने-आप ही सुलझ जायेंगे, उन पर मेहनत नहीं करनी पड़ेगी |
प्रारम्भ में सुबह के समय 5 मिनट या 10 मिनट का समय योग के
लिए रख सकते है फिर धीरे-धीरे समय बढ़ाते जाए | मन में संकल्प की गति को थोड़ा मौन
करने में ही 5-10 मिनट निकल जाते है इसलिए थोड़ा-सा समय ज्यादा दे |
अपनी सोच को रोकने की कोशिश नहीं करे लेकिन अपने आप पर
ध्यान दे की मै दुसरे प्रकार के विचार भी निर्मित कर सकता हूँ | आप देखेंगे कि तो
आयेंगे, यदि आप उन पर ध्यान नहीं देंगे तो वे अपने-आप ही धीरे-धीरे ख़त्म हो जायेंगे
| यदि आप उस विचार में ही उलझ गए कि ‘फिर तो आपका सारा काम ही ख़त्म हो जाएगा |
हमें ध्यान यह रखना है की मुझे उत्पन्न क्या करना है |
मान लो हमने एक संकल्प निर्मित किया ‘मै शांत स्वरुप आत्मा
हूँ, शांति मेरा अपना स्वभाव है |’ इसे हम सिर्फ संकल्प स्तर पर निर्मित करते है
तो उतना एकाग्र नहीं हो पाते लेकिन जिस चीज का हम ध्यान करेंगे वो हमारी अनुभूति
में भी आने अल्गती है | फिर उसको पूरा करना आसन हो जाता है | अब वो द्रश्य ले आओ
की कौन-सी परिस्थिति में हम कुद्ध होते थे और अब द्रश्य निर्मित करो कि वही
कंप्यूटर है, वही लोग है लेकिन हम शांति है | अपने आपको शान्ति मेरे स्वरुप में ही
आ जाएगी तो जीवन कैसा होगा | यह लक्ष्य निर्धारण है, इस लक्ष्य को पक्का करे और
फिर उसको नियमित करके मन में व्यवस्थित कर दे तो फिर वह सारा दिन चलना शुरू हो
जायेगा |
हमारे चेतन मन रोजमर्रा के संकल्प करता है | जब ये
धीरे-धीरे बंद हो जाते है तब हम अव्च्तें मन पर आ जाते है |अवचेतन मन आधार है जहाँ
हमारे गहरे संकल्प बैठे हुए है | उस मौन की अवस्था में हम जो बिज बोयेंगे , जो
संकल्प करेंगे वो आधार (नीव) में जाकर बैठ जाएगा | आप हर दिन अपने साथ बैठे और
अपने-आपसे बाते करे कि हरेक जो कर रहा है, अपने अनुसार सही कर रहा है | वो अपनी
क्षमता, अपनी गति,अपनी सही और गलत की परिभाषा से काम कर रहा है | मै उसको स्वीकार
कर सकती हूँ लेकिन हमारी अपेक्षा हर एक से पूरी नहीं हो सकती है | बहुत गहराई से
शांत मन में ये डालना है | हम अपने मन में जो अवधारणा दाल देंगे, मन उसी पर दिन भर
कार्य करता रहता है | एक दिन नई अवधारणा को लेकर चलेंगे तो सारे दिन में उसका
परिणाम दिखाई देगा, वो परिणाम प्रेरणा देगा | थोड़ा दिन में महसूस करेंगे की नई
अवधारणा मजबूत होती जा रही है |
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