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 आप हिम्मत का एक कदम बढाओं तो परमात्मा की सम्पूर्ण मदद आपके साथ होगी !

चक्रव्यूह से सावधान






महाभारत कि कहानी में पांडवो और कौरवो का वर्णन आता है | पांडव अर्थात भगवान से प्रीत बुद्धि,सदा उन कि श्रीमत पर चलने वाले, सुकर्म करने वाले | कौरव माना विपरीत बुद्धि  और पापकर्मी, सदा औरो को दुःख देने वाले | इन दोनों का युद्ध चला | जब पांडवो कि विजय निश्चित होती जा रही थी तो कौरवो ने चक्रव्यूह कि रचना कि जिसमे तीन कौरव महारथी अर्थात दुर्योधन,द्रोणाचार्य और कर्ण उपस्थित थे जिन्होंने पांडवो का सर्वनाश करने कि प्रतिज्ञा कि थी | आखिर इस  चक्रव्यूह में एक पांडव महिवीर कि वीभत्स मृत्यु हो ही गई जिसको चक्रव्यूह से बाहर निकलने कि युक्ति पता नहीं थी |
संगमयुग में पिता परमात्मा और आत्माओ के मंगल मिलन तथा मानव से देवमानव बनने के पुरुषार्थ  में पांडवो कि हार व जीत कि यादगार रूप ही महाभारत कि कहानी है | चक्रव्यूह कि रचना और उसमे अभिमन्यु कि म्रृत्यु होना यह भी एक यादगार ही है विचार कीजिये , आज कौरवो ने अर्थात मायावी दुनिया ने ऐसे कौन-से चक्रव्यूह कि रचना कि है जिसमे पुरुषार्थी बच्चे धीरे-धीरे फंसकर,बाहर आने का रास्ता भूल रहे है और संगमयुग के अति अमूल्य समय को नष्ट कर रहे
है |
चक्रव्यूह का नाम है छोटा पर्दा और उसमे है तीन कौरव महारथी-टी.वी.,इन्टरनेट,और मोबाइल |
            
                      

                            टी.वी


चक्रव्यूह का रहस्य था, अन्दर जाने के बाद बाहर आने का रास्ता टी.वी. के सामने आप बैठते है सिर्फ समाचार देखने लेकिन होता क्या है ? माया चुपके से आप के हाथ से रिमोट को चीन लेती है और दुनिया के रंग बिरंगे आकर्षणों के चक्रव्यूह में फंसा देती है | वह मायाजाल इतना शक्तिशाली रहता है कि मन और बुद्धि दोनों माया के कैदी होकर परखने कि या निर्णय करने कि शक्ति को सम्पूर्ण खो देते है भगवान कि श्रीमत का उल्लंघन हो रहा है, स्वयं का आध्यात्मिक अध: पतन हो रहा है यह जानते हुए मानते हुए इसके भयंकर परिणाम को जानते हुए भी विकर्म हो जाता है | विकर्म करना अर्थात सारे कल्प कि अपनी पात्रता को लकीर लगा देना | इसी को यादगार में मौत के रूप में दिखाया है | कई बहन भाई कहते है , बाबा हम तो सिर्फ आदि खेल देखते है या समाचार देखते है इसमें क्या खराबी है ? लेकिन यही है ज्ञान कि धारणा कि कमी | सामान बनने के लिए या स्वर्णयुग में उंच पद पाने के लिए चार विषय है – ईश्वरीय ज्ञान, सहज राजयोग, दैवी गुणों कि धारणा और ईश्वरीय सेवा | विचार कीजिये,क्रिकेट या समाचार देखना, इन चारो में से कौन-से विषय में आते है ?
तंदुरुस्ती के लिए खेलना अलग बात है लेकिन समय बिताने के लिए या मनोरंजन अर्थात मन कि गुप्त इच्छाओं को पूर्ण करने के लिए टीवी का सहारा लेना , यह अपने आप को , बाप को और दैवी परिवार को ठगना है |जबकि इस बात को हम जानते है कि दुनिया कि सर्व आत्माए शिवबाबा के बच्चे है, आपस में भाई-भाई है तो फलाना हारे और फलाना जीते इस मनोभाव से खेल देखना , किसी कि हार और किसी कि जीत कि चाहना रखना, क्या यह विश्व भ्रातृत्व के पवित्र बंधन को तोड़ना नहीं है |
समाचार में भी लड़ाई-झगड़ा,लूट मार , अत्याचार –अनाचार यही तो है | इन चीजो को देखना क्या आप पवित्र हंसो को शोभता है ? क्या यह श्रीमत का पालन है ?
                                     

                                इन्टरनेट 


  हम इन्टरनेट में जाते तो सेवा के लिए है या आवश्यक जानकारी लेने के लिए लेकिन , अन्दर जाने के बाद माया के विभिन्न प्रलोभन भरे रूपों के पीछे जाकर सुरक्षित बाहर आपने का रास्ता ही भूल जाते है और व्यक्ति-वस्तु वैभव या दुनियावी मनोरंजन के जाल में फंस पड़ते है | जब वहां से बाहर निकलते है तो जरुर घायल हो के ही निकलते है जिस घाव को ठीक करना बहुत ही कठिन है | इसके भयानक परिणाम भुगतने पड़ते अहि जैसे कोई काराग्रह कि सजा खाकर लौटते है तो समाज में उनका क्या मूल्य रह जाता है ?सभी कि नजर में वे गिर जाते है |स्नेह , प्यार , गौरव , अपनेपन से वंचित रह जाते है | हमेशा दुरो से नफरत, वैर-विरोध , अपमान का सामना करना पड़ता है | यहाँ भी ऐसे है, जो माया कि कैद में रहकर विकर्म करते रहते है वे आशीर्वाद के पात्र बनने कि बजाये बद्ददुआओ के शिकार बन पड़ते है |
आश्चर्य तो इस बतात का है कि कई बहन-भाई योग करने के लिए समय न मिलने कि फरियाद करते रहते है लेकिन कंप्यूटर के सामने घंटो बैठकर फेसबुक आदि में देहधारियो के नए-नए चेहरे ढूढने का समय उन्हें पता नहीं कहा से मिल जाता है ? मैसेज भेजना , चैटिंग करना , गेम्स खेलना आदि व्यर्थ बातो में ढेर समय बिताने वाले बच्चे ही अक्सर राजयोग के अभ्यास के लिए समय कि कमी का बहाना देते है |
                                       
                                मोबाइल
 
भले सेवा को आगे बढाने में मोबाइल से मदद मिल रही है लेकिन मन और बुद्धि को मनमनाभाव अवस्था से दूर ले जा कर देहधारियो कि याद और सम्बन्ध-संपर्क के जाल में फ़साना , माया के विभिन्न रूपों के अर्थात वीडियो , दुनियावी गीत-संगीत,गेम्स आदि के आकर्षण में लाना , व्यर्थ बातो को, समाचारों को जहाँ-तहां फैलाकर सब के संकल्पों को कमजोर बनाना ,यह सब मोबाइल रुपी कौरव का ही षड्यंत्र है |
एक यादगार परीक्षित राजा कि भी है | उसे श्राप ठाट कि सांप से मृत्यु को पाए | उसने ऐसी जगह पर अपना महल बनाया जहाँ कोई जीव-जन्तु प्रवेश ही न कर सके | लेकिन , एक बार राजा को फल खाने कि इच्छा हुई | उस फल में एक कीड़ा था | राजाकीड़े के गुप्त और भयानक रूप को पहचान नहीं सका |उसी कीड़े ने सांप बनकर राजा कि जान ले ली | मोबाइल भी गुप्त और साधारण रूप में आया हुआ एक भयानक कीड़ा है | इसका मतलब यह नहीं कि उसका इस्तेमाल ही न करे | सेवा के लिए जरुर करे लेकिन अलबेला बनकर,माया के क्षणिक आनंद पाने कि इच्छा
से या देहधारियो के लगाव-झुकाव के वश अगर इस्तेमाल किया तो वही सांप बनकर अर्थात माया का विकराल रूप धारण कर पुरुषार्थी को हार खिला देगा, यह निश्चित है |

कई कहते है, हम आज से ही टी0 वी0 देखना तो छोड़ देने लेकिन इन्टरनेट और मोबाइल के बिना तो आजकल ईश्वरीय सेवा होना मुश्किल है | उसका भी हल किया जा सकता है |
कथा में लिखा है , पांडवो में से सिर्फ अर्जुन ही इस चक्रव्यूह में जाने और विजयी होकर लौटने के राज को जानता था | तो अर्जुन कौन ? दो बातो से अर्जुन कि पहचान दी जाती है | एक, उसका मन-बुद्धि लक्ष्य पर ही सदा केन्द्रित रहता था | दूसरा वह हमेशा भगवान को अपना साथी बनाकर रखता था , उसकी आज्ञानुसार ही हर कदम रखता था | इन दो कारणों से वह दुश्मन के हर प्रकार के षड्यंत्र को जानता भी था और सदा विजयी भी रहता था |
संगमयुग में अर्जुन कौन है ? वही जो माया के हर प्रकार के आक्रमण को जानते हुए, मायावी दुनिया के सर्व साधनों (इन्टरनेट,मोबाइल आदि) को सेवा में सफल करते हए, अपने श्रेष्ठ लक्ष्य से विचलित न हो | काम,क्रोध,लोभ,मोह और अहंकार इन विकारो के अंश से मुक्त, निराकारी-निर्विकारी और निरहंकारी स्वरुप में स्थित,सदा बापदादा का साथी अर्थात मनमानाभव के श्रेष्ठ आसन पर सदा विराजमान हो | सामने सदा धर्मराज को रखने से दोहरी सुरक्षा सुनिश्चित हो जाती है |
जरा से भी मन और बुद्धि माया कि आकर्षण में आने का लक्षण दिखाई दिया तो समझो, मै पुण्यात्मा बनने के बजाये पापात्मा बनने जा रहा हूँ |
पाप कर्म का परिणाम है पुरुषार्थहीनता | एक पुरुषार्थी के लिए पुरुषार्थ में हीनता आना मृत्युदंड से भी कठिन सजा है | क्योंकि वर्त्तमान में ज्ञान-गुण-शक्तियों में परमात्मा शिव्पिता के सामान बनकर उनके दिल्तख्त पर विराजमान होना और भविष्य में विश्वराज्य सिंघासन के अधिकारी बनना इन दोनों का आधार ही है संगमयुग का पुरुषार्थ | तो किया हुआ पाप, बुद्धि और भी दुनियावी आकर्षणों कि कैदी बन जाती है , इसी को कहानी में विभत्स्य मृत्यु के रूप में दिखाया है |
तो चक्रव्यूह से बचकर रहने के लिए क्या करना है ? सदा अर्जुन बनकर रहना है अर्थात यह द्रढ़ प्रतिज्ञा करनी है कि इन साधनों को सिर्फ ईश्वरीय सेवा और लौकिक-अलौकिक जिम्मेदारी निभाने मात्र ही इस्तेमाल करेंगे न कि मनोरजन के लिए , न कि मन में छिपी हुई कामनाओ को तृप्त करने के लिए |

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