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संकल्पवान और संकल्पहीन






किसी ने सत्य कहा है, “यह दुनिया संकल्पवानो की है, संकल्पहीन तो यूँ ही भूमि का भर बढाया करते है |” जैसे बलवान और बलहीन का अंतर स्पष्ट है किसी भी परिस्थिति में , प्रतिकूलता में भी जो धारण किये हुए श्रेष्ठ संकल्पों को द्रढ़ता से पकडे रहता है, उनको क्रियान्वित करता रहता है , वह है संकल्पवान और जो विपरीत परिस्थितियों के झोकों में या अल्बेलेपन में या लापरवाही में अपने श्रेष्ठ संकल्पों को त्याग देता है, भुला देता है या ढीले कर देता है वह है संकल्पहीन |
संकल्प की द्रढ़ता पर जीवन की उन्नति-अवनति निर्भर है | मजबूत संकल्प वाले की मंजिल की और गति द्रुत होती है और संकल्प में दिल आने से गति भी लंगडाती –लड़खड़ाती नजर आती है | गति में भय और संशय द्रश्यमान होता है, लगता है जैसे कोई जबरदस्ती घसीटे जा रहा है
                                  
                          

प्रश्न यह है की संकल्प टूट क्यों जाता है , उसे मजबूत बनाने का उपाए क्या है? इसका उत्तर बड़ा सरल है | जो अपने लक्ष्य पर मन को टिकाता नहीं , बार- बार लक्ष्य का स्मरण करता नहीं तो मन को अहसास होने लगता है की शायद यह लक्ष्य महत्वपूर्ण नहीं है और वह कही भी खिसक जाता है | दूसरी बात,मन के सामने दो विकल्प है, एक तो वह लक्ष्य की और जाए और दूसरा, इन्द्रियों के रासो में भटके | यदि इन्द्रियो की ओर भागता है तो शब्द,रस रूप स्पर्श के झूठे आकर्षणों में फंसकर लक्ष्य को भुला देता है | इन्द्रियो पर नियंत्रण करके ही लक्ष्योंमुख हुआ जा सकता है | तीसरी बात है, जो प्रतिकूलताओं को सहन नहीं कर पाटा वह भी लक्ष्य से विचलित हो जाता है |
                   
                    


संकल्पवान का अर्थ है दृढ इच्छाशक्ति वाला | द्रढ़ता और जिद्द में अंतर है | द्रढ़ता सफलता का अधर है और जिद्दी कभी सिद्धी और प्रसिद्धि नहीं पा सकता | जिद्द के पीछे व्यक्ति का पूर्वाग्रह , पुराना संस्कार,स्वार्थ मै-पन आदि हॉट अहै | वो संस्कार उसे उद्दीप्त करता है और वह परिणामो को नजरअंदाज करके भी अपनी बात,अपने विचार अपने द्रष्टिकोण को ऊपर रखता है | यदि कोई बाधक बनता है तो वह क्रोध करता है, शत्रुता ठान लेता है | इस प्रकार नकारात्मकता वशीभूत होता है | इतिहास में कई लोगो की जिद्द के कुपरिणाम दर्ज है | मुहम्मद तुगलक ने राजधानी बदलने की जिद्द की जिसके कुपरिणाम कइयो ने झेले | भारत-पाकिस्तान का विभाजन भी जिद्द का ही कुपरिणाम है | कोई शक्ति अर्जित करके जिद्दी हो जाये तो परिणाम अधिक भयंकर हो जाते है | जिद्दी की भेट में द्रढ़ता वाला अपने ह्रदय की पवित्र भावनाओ के सहारे आगे बढता है | किसी के प्रति भी कोई नकारात्मक भाव ना रख वह केवल लक्ष्य को सामने देख चलता जाता है | इस क्रम में कोई बाधक भी बनता है तो भी न तो उसे क्रोध आता, न वो हतोत्साहित होता, न रूकता बल्कि उसके प्रति रहम भाव रखकर उसे भी साथी और सहयोगी बना लेता है | अतः द्रढ़ता की शक्ति से विजय होती हिया और जिद्द वाला हार खा लेता है |
                
            
        
महात्मा गाँधी ने कहा है,”मुट्ठीभर संकल्पवान लोग जिनकी अपने लक्ष्य में दृढ आस्था है, इतिहास की धारा को बदल सकते है | भारत की आज़ादी की लड़ी के दौरान उन्होंने सन 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन चलाया और नारा दिया, ‘करो या मरो’ | सारा भारत इसमें कूद पड़ा , इस भावना के साथ की या तो आज़ादी लेकर छोड़ेगे या मर मिटेंगे | जेले भर गई | जेलों में लोगो को डालने की जगह नहीं बची | जब उन्होंने दांडी यात्रा शुरू की तब भी कितनी द्रढ़ता थी ! शारीर की आयु बड़ी थी लेकिन चलने में सबसे आगे | इतने तेज चलते थे की पीछे चलने वाले दौड़ते थे | तब भी उनका नारा था , चाहे मई कुत्ते की मौत मरू , चाहे मई कौए की मौत मरू पर नमक कानून भंग करूँगा | गर्मी में चले, कांटो पर भी चले, पत्थरो पर भी चले, भूखे-प्यासे भी चले, अकेले भी चले पर द्रढ़ता के साथ चले | लोग पदों पर चढ़कर देखते थे | शारीर की कोई सजावट नहीं, भीड़ में घिर जाते थे | ताकत इसमें थी ? संकल्प में ताकत थी | उस ताकत ने भारत को आजाद करा दिया | अब हमारे सामने भी एक बहुत बड़ी मंजिल है, पहले हम खुद को तो आजाद करे |हमरी लड़ाई तो अपने आप से है |
एक बार एक किसान के गोदाम में बहुत सरे चूहे घुस गए और अनाज ख़राब करने लगे | किसान ने लोहे का एक बड़ा पिंजरा बनवाया , उसमे चूहे फंसने लगे | एक दिन एक बहुत मोटा चूहा फंस गया | उसे बड़ा बुरा लगा की की मै तो बंधन में आ गया | उसने उछल-कूद बहुत मचाई, इससे पिंजरा खिसकने लगा | उसको लगा की मै खिसकाते-खिसकाते इसे बाहर ले जा सकता हूँ और सचमुच वो गोदाम से बाहर जंगल में आ गया | उसे बड़ी ख़ुशी हुई की मै गोदाम के बंधन से छुट गया गोदाम से तो बाहर आ गया लेकिन पिंजरे में तो अभी भी था | हम सब भी कई गोदामों से तो बाहर आ गए है लेकिन पिंजरे में तो अभी भी है | वो पिंजरा कौन-सा है ? खुद के कमजोर संस्कारो का, स्वाभाव का , खुद की आदतों का | गोदाम का बंधन तो बहुत बड़ा था, दिखता था पर यह पिंजरे का बंधन सूक्ष्म है, दिखता नहीं | इस पिंजरे से बाहर आने के लिए चाहिए मुक्ति के प्रति दृढ संकल्प शक्ति | इसके लिए पहले अपनी चेकिंग करनी है और फिर अपने को बदलना है |
                          
                           
शिव बाबा ने कहा है, अपने को बदलने के लिए चाहिए अपने मन के ऊपर राज्य | अमन फिसलने लगे तो हम इसे रोके | हम बार-बार देखे की मन कहाँ गया ? मैंने संकल्प क्या किया था , फिर ढीला कैसे हो गया ? जैसे गाड़ी चलानी सिखने वाला ध्यान रखता है की क्या मई इसे सड़क पर चला रहूँ ? यह सड़क से नीचे कैसे उतर गई, उसे फिर सड़क पर लायेगा | गाड़ी फिर नीचे घास में रेट में जाएगी,फिर सड़क पर लायेगा और ऐसे करते-करते वह कुशल हो जायेगा | मन भी ऐसे है हम इसे मंजिल की ओर ले जाते है, यह फिर फिसल जाता है | अतः हमारा अधिकतम ध्यान इस बात पर चाहिए की मन क्या कर रहा है ? कहाँ गया ? क्यों गया ?  मेरा निर्णय ठीक है ?मै संस्कारो के वशीभूत तो नहीं हूँ? मेरे संस्कारो को कुसंग तो नहीं लगा ? मेरे मूल संस्कार कौन-से है ? क्या मेरे मूल संस्कार कर्म में आये या कोई मिलावट हुई ?
इन्द्रियो की आदत है, ये एक विषय से दुसरे विषय पर एक पल में खिसक जाती है और इनको उकसाता है मन | अगर मन वश में है तो आंख ताकत नहीं की वो किसी विषय पर अटके | मन पीछे बैठकर कहता है की इसे देखते ही रहना, पीछे हटना नहीं, तो आंख को मन का सहयोग मिल जाता है | आत्मा यदि कहती है की यहाँ से हटो,यह गलत है तो भी आंख मानती नहीं क्योंकि मन आकर्षित है | तो आत्मा पहले मन को हटाये, मन को विश्वास में ले | शिव बाबा कहते है , संकल्प को मोड़ो , संकल्प को बचाओ, संकल्प व्यर्थ गया तो साड़ी शक्ति व्यर्थ चली जाएगी | जब भी एकांत में बैठो, अपने तीनो अनादि साथियो (मन,बुद्धि,संस्कार) को पुचकारो, उनको प्यार हाल-चाल पूछो , उनकी दिशा की जाँच करो |
                     

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