हर वर्ष 14 सितम्बर को ‘हिंदी दिवस’ के
रूप में मनाते आ रहे है | भाषा तो भाव और भावना की अभिव्यक्ति का एक माध्यम अथवा
साधन हुआ करती है || हम लोग जैसे हिंदी को एक उच्च भाषा मानते है , वैसे ही हमें भावों
और भावनाओ की अभिव्यक्ति की रीति उच्च ही अपनानी चाहिए | भाषा के ऊँचा होने का
प्रमाण तो उसका प्रयोग करने वाले लोगो के जीवन की अथवा मानसिक स्थित एवं व्यवहार
की ऊंचाई से मिलना चाहिए |
हिंदी एक उच्च भाषा है परन्तु हमारा जीवन कितना उच्च है ?
क्या हिंदी भाषा अथवा हिंदी साहित्य के द्वरा हमने अपने संस्कारो का दिव्यीकरण
किया ? क्या हम प्रेम की भाषा अथवा एक-दूसरे के प्रति सम्मान की भाषा को सीखे ?
क्या हमने अपने देश के आध्यात्मिक मूल्यों (Spiritual Values) तथा
संस्कृति को, जिसका ही एक अंग यह भाषा है, अपने मन में गौरवमय स्थान दिया ? क्या
हमारी दृष्टी में भाषा के साथ-साथ चरित्र और अनुशासन का ऊँचा स्थान है ?
आज भारतवासियों में आपसी भेदभाव मनमुटाव क्यों? सोचने पर आप
मानेंगे की इसका एक मात्र कारण यही है की वे अपने देश के पूर्वकाल के सर्वोत्कृष्ट
इतिहास को, अपनी उच्च मर्यदा को, अपने यहाँ के सर्वोत्तम आध्यात्मिक ज्ञान को भूल
चुके है | उन्हें यह मालूम नहीं की यह भारत पहले देवालय अथवा शिवालय था | सतयुग और
त्रेता युग में इसी भारत में काम-क्रोधादि का नाम-निशान भी न था | यहाँ सदा प्रेम
की वीणा बजाती थी और और लोग सुख के गीत गाते थे | द्वेष,हिंसा,इर्ष्या,भेद-भाव ने
लोगो को कभी स्पर्श ही न किया था | आज भारत के उस स्वर्णिम इतिहास का कही उल्लेख
या पठन-पाठन ही नहीं रहा और लोग एक परमपिता परमात्मा को भूल चुके है, इसी कारण आज
एकता नहीं रही | वे एक-दुसरे को आत्मा की दृष्टी से देखने के आदेश को भूल चुके है
और इस बात को भी विस्मृत कर चुके है की वास्तव में हम सभी आत्माए एक ही परमधाम
अथवा ब्रह्मलोक रुपी देश से यहाँ आई है |
यदि हम देश में एकता चाहते है तो हमें चाहिए की हम सभी को
एक परमपिता परमात्मा की लग्न में मग्न करने का प्रयत्न करे हम सभी को नर से नारायण
या मानव से देवता या तमोप्रधान से सतोप्रधान बनने का लक्ष्य दे | एक ही लक्ष्य एक
ही इष्ट अथवा एक ही स्मृति से एकता आएगी |
ReplyDeletedaily gyan hi