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 आप हिम्मत का एक कदम बढाओं तो परमात्मा की सम्पूर्ण मदद आपके साथ होगी !

दादी धैर्यमणि






     मम्मा ने ही मुझे योग सिखाया और योग्य बनाया 

ये कहानी दादी धैर्यमणि कि कहानी है जो हमें अतीत अनुभव कराती है, आइये जानते है दादी धैर्यमणि कि कहानी | क्या थी ?

सन 1937 में मै पहली पहली बार अपनी बहन भगवती के साथ बाबा-मम्मा के सत्संग में गई | जाते ही मुझे मम्मा ने देख लिया गले लगाया , टोली खिलाई एवं मुस्कुराई | मै भी मुस्कुराई तो मम्मा ने कहा, कल भी आना | मै उस दिन से रोज जाती रही और ज्ञान सुनकर बहुत अच्छा लगा | मम्मा ही मुझे ज्ञान प्राप्त करने तथा यज्ञ में लाने के लिए निमित्त बनी | मै बहुत छोटी थी इसलिए मम्मा ने कहा, तुम ओम निवास में रहकर ज्ञान-योग कि पढाई करो | माता-पिता तो छुट्टी नहीं दे रहे थे | मम्मा ने मुझे युक्ति बताई कि जब माँ-बाप बहुत खुसी में हो तब जाकर तुम उनकी गोद में बैठो और प्यार से छुट्टी मांगो, अवश्य दे देंगे | ऐसे ही हुआ | एक दिन जब मेरे माँ-बाप बहुत खुश मुड़ में थे तो मैंने उनसे छुट्टी मांगी और पिता जी ने पत्रलिखकर दे दिया, साथ में माता जी के भी हस्ताक्षर करवाए | इस प्रकार, लौकिक बंधन से मुक्त कराने में मम्मा ने बहुत मदद कि |
                        
                       कर्मेन्द्रियजीत महाकाली 

अपने साथ संदली पर बिठाकर मम्मा हमें योग सिखाती थी, हमारी अवस्था को चेक करती थी | कर्मणा सेवा करते समय भी मम्मा आत्मिक स्थिति में रहती थी | एक बार मैंने पूछा, ‘मम्मा, आप गेहूं साफ कर रही है, अभी आपका क्या संकल्प चल रहा है?’ मम्मा ने कहाँ,हम गेहूं साफ नहीं कर रहे है, हम साक्षीद्रष्टा होकर कर्मेन्द्रियो से साफ करा रहे है | मै नहीं कर रही हूँ, करा रही हूँ |’ उस समय ज्ञान का विस्तार इतना नहीं था लेकिन मामा-बाबा को देख-देखकर हमन गुणों को अपनाया, जीना सिखा और जीवन बनाया | मम्मा का जीवन नेचुरल था | उनका स्वभाव बहुत सरल था | मिठास थी उनके व्यवहार में | उनमे सदा यह भाव रहता था कि सबको आगे बढ़ाये | मम्मा हरेक कि योग्यता और विशेषता अनुसार वही कार्य दिया करती थी जो वह सहजता से कर सके |
                             
                  मम्मा कैसे बनी मम्मा 

मम्मा सबकी पालना कर मम्मा बनी , सबको माँ की ममता देकर मम्मा बनी | सबको अपना बनाकर मम्मा बनी | पवित्रता और नि:स्वार्थ प्यार कि शक्ति से सबको आकर्षित कर मम्मा बनी | मम्मा से मुझे श्री लक्ष्मी और जगदम्बा कि भासना आती थी | मम्मा ने हमें सिखाया कि किसी से भी वैरभाव नहीं रखना है, किसी का अवगुण नहीं देखना और न ही अपनाना  है |
                   
               चन्द्रकान्ति में योग कराने वाली सजग साधिका 

हफ्ते एम एक बार हम सुप्रीम पार्टी वाले मम्मा के साथ बैठकर अमृतवेले योग करते थे | जब मम्मा चांदनी में बैठ योग कराती थी तो हम भी अलग-अलग कोनो में बैठ योग करते थे | कभी-कभी मम्मा को ही अपने ग्रुप में बुलाते थे और मम्मा 3.30 से 4.00 बजे तक हमको योग कराती थी | हमें उस समय ज्ञान-चन्द्र माँ के शीतल प्रकम्पनो से शांतिधाम का अनुभव होता था | इस प्रकार मम्मा ने हमें योगी के साथ- साथ योग्य बनाया |

मम्मा अमृतवेले दो बजे उठकर अकेले में योग करती थी | फिर साढ़े तीन बजे तैयार होकर बाहर आती थी | चार बजे से पांच बजे तक सामूहिक योग होता था, उसमे मम्मा अवश्य आती थी | उसके बात नित्यकर्म पूरा करती थी | फिर एक-एक दिन , एक-एक बहन को संदली पर बिठाकर ज्ञान कि कोई-न-कोई  पॉइंट पर समझाने के लिए कहती थी | इस प्रकार मम्मा सबको भाषण करना, क्लास कराना सिखाती थी | बाद में सेवा करते थे | दोपहर के भोजन के बाद विश्राम होता था | शाम को 5 बजे मम्मा ऑफिस में बैठती थी और यज्ञवत्सो को टोली खिलाती थी | फिर ऑफिस का कामकाज देखती थी | उस समय मै यज्ञ में मुरली लिखने कि सेवा करती थी | शाम को हम यज्ञसेवा जैसे अन्नाज साफ करना सब्जी काटना आदि करते थे |
 रात्रि भोजन के बाद मम्मा कचहरी कराती थी |
                     
                मीठी माँ कि सुनायी हुई अनमोल शिक्षाये

1.      इस ज्ञान से सिर्फ अपना पेट नहीं भरना है लेकिन दुखियो को भी शांति देने का उपाय करना है | यही सर्वोत्तम सेवा है 

2.      परमपिता परमात्मा विश्व का रचयिता है | वो तो नहीं दुनिया रचने का काम कर ही लेगा लेकिन तुम बच्चे स्वयं अपने विकारो का विनाश और दैवी गुनु कि रचना करो | जैसे किसी के शरीर पर कोई बोझ कि बहुत भरी गठरी है | अगर तुम भी जल्दी-जल्दी उन्नति को पाना चाहते हो तो पहले पापो कि गठरी उतारो अर्थात आत्मा के पिछले पापो को दग्ध करो | इसकी युक्ति यही है कि श्वासों-श्वास आने परमपिता परमात्मा शिव को याद करो, उनके साथ सर्व सम्बन्ध जोड़ पूरा हक़ जमाव कि 21 जन्मो तक दैवी स्वराज्य प्राप्त कर के ही रहेंगे, ऐसा संकल्प अन्दर में पक्का हो |

3.      कोई-कोई आत्मा को घड़ी-घड़ी पास्ट जीवन कि याद आती है जिस कारण वह खुश नहीं रहती | अन्दर देखना है कि मुझे अब पुराने चौपड़े को ख़त्म कर नया चौपड़ा (कर्मो का कहता) बनाना है | अगर नए में पुराना संकल्प-विकल्प मिक्स करते रहेंगे तो तुम आत्माओ का न पुराना साफ होगा और न नया चौपड़ा बन सकेगा | इसलिए पुराने मायावी संकल्प-विकल्प को भुला दो | पास्ट (बीती सो बीती), तुम आत्माओ का नया ईश्वरीय जन्म हो गया तो सदा ख़ुशी में रहो |
4.      सर्विस करने का मतलब अपनी जीवन को आदर्शमय जीवन बनाना है अन्य आत्माओ के ऊपर प्रभाव पड़ सके |
5.      अब तुम सच्चे राम कि सच्ची सीताये बनी हो तो रावण कि कोई भी निशानी अपने पास न रखो |
        


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