कानो कि सफाई का
मतलब है कि बुरा सुनते हुए भी अच्छा सोचना जो लोग अच्छा सोचते है वो लोग कभी भी
दुखी नहीं हो सकते क्योंकि, जो हम सोचते है चाहे वो सकारात्मक हो या नकारात्मक
सोचना हमें ही पड़ता है इसलिए हमें सदा सकारात्मक ही सोचना है तभी दुखो का अंत हो
सकता है
कानो
की सफाई
हम जीने के लिए दिनभर कई शारीरक क्रियाएँ जैसे- साँस
लेना, पानी पीना, भोजन करना आदि करते है परन्तु कई बार इन क्रियाओ के साथ कुछ
अवांछित कीटाणु हमारे शरीर में प्रवेश कर जाते है | वे भयंकर रोग का कारण बन जाते
है जिन्हें ख़त्म करने के लिए फिर कडवी दवाइयों का सेवन करना पड़ता है कीटाणुओ से
बचने के लिए हम आवश्यक सावधानी रखते है जैसे कि पानी को फ़िल्टर कर पीना, भोजन
बनाते समय सफाई का ख्याल रखना,बदबू वाली जगह पर मुहं ढक कर रखना आदि | कीटाणुओ से
शरीर कि रक्षा के साथ-साथ बुराइयों से मन कि रक्षा भी आवश्यक है यह सम्भाल न रखने
से कई भयंकरमानसिक बीमारियाँ (बुराइयाँ) जैसे कि इर्ष्या नफरत, सम्बन्धो में
मतभेद, मनमुटाव , दूरियां , चिडचिडापन , क्रोध आदि विकराल रूप धारण कर हमें खोखला
करने में कोई कसार नहीं छोडती | अन्दर गलत विचार जाने का एक रास्ता है हमारे कान |
दिन भर इन कानो से कुछ न कुछ सुनते रहते है | हम इनसे सत्संग भी सुनते है पर कई
बार इनसे कुछ गलत बाते भी अन्दर चली जाती है जो हमारे विचार प्रक्रिया, बोल तथा
आचरण पर गहरा असर डालती है |
ट्रिप्ल फ़िल्टर
महान दार्शनिक सुकरात के अनुसार कोई भी बात सुनने से
पहले सुननाने वाले से यह सुनिश्चित कर लेना चहिये कि 1. वह बात सत्य हो 2. अच्छी
हो और 3. उसमे हमारे लिए कुछ उपयोगिता हो | यूँ ही व्यर्थ सुनने का कोई औचित्य
नहीं | जैसे हम ट्रिप्ल फिल्टर्स पानी का प्रयोग करते है , ऐसे ही कानो पर यह
ट्रिप्ल फिल्टर लगाकर ही हमें बातो को अन्दर प्रवेश होने देना चाहिए ताकि
नकारात्मक बाते नुकसान न पहुंचाए |
सुनी
हुई बात का असर जरुर होता है
आत्मा मन , बुद्धि, संस्कार सहित है हम जो भी सुनते है
उसे आत्मा मन द्वारा ग्रहण करती है , वह बुद्धि पर चित्रित होकर संस्कारो में
अंकित हो जाता है और किसी व्यक्ति के प्रति एक अनजानअवधारण का निर्माण करता है
ज्ञान के गीत, संगीत सुनकर मनुष्य प्रसन्नता, हल्केपन का अनुभव करता है वही व्यथा
के गीत सुनने से गंभीर हो जाता है , भजन सुनने से प्रभु-प्रेम में मग्न हो जाता है
लड़ाई-झगड़ा शोर, गलियां आदि सुनने से दुखी अशांत होकर चिडचिडापन अनुभव करता है |
अपनी प्रशंसा सुनने से कार्य प्रति उत्साह- उमंग बढ़ता है | और निदा सुनकर निराशा ,
नाउमीदी तथा सफलता का अनुभव करता है
उचित व्यक्ति को सुनाएँ
गंदगी से बचाने लिए जैसे चीजो को ढककर रखते है ऐसे ही
कानो को भी ज्ञान का ढक्कन लगाकर रखना चाहिए फिर भी यदि जाने- अनजाने, चाहे-अनचाहे
कोई ऐसी बाते सुनने कोई इल जाती है जो नहीं सुननी चाहिए तो उन्हें निकालनाभी आना
चाहिए | जैसे जगह जगह कचरा बिखेरने से गंदगी, बीमारियाँ बढ़ती है,कचरे को उचित
स्थान पर ही डाला जाता है ऐसे ही किसी कि कमी कमजोरी को जगह जगह वर्णन करने से
वातावरण भरी तथा दूषित होता है और वह व्यक्ति भी स्वयं को बदलने में असमर्थ महसूस
करता है इसलिए बात वहां बताये जहाँ से उसका सुधर हो सके | शुभकामना रखकर बताये,
गलत भावना रखकर नहीं |
कमल
समान बनाये कानो को
प्यारी मातेश्वरी जी कहा करती थी कि
ये कान कचरे के डिब्बे नहीं है जो इधर-इधर कि फ़ालतू,गन्दी बाते सुनकर इन्हें गन्दा
करते रहो और स्वयं को बीमार करते रहो | कानो कि सफाई पर ध्यान बहुत जरुरी है
देवताओ के शरीर के हर अंग का वर्णन करते समय कमल शब्द जोड़ा जाता हो, जैसे
कमलमुख,कमलनयन,कमलकर्ण आदि | तो हम भी कानो को कमल सामान बनाये अर्थात सुनते हुए
भी न्यारे-प्यारे बनकर रहे | दुनिया के बीच में रहकर ही अपने कानो को कमल सामान
बनना है, दुनिया को त्यागकर नहीं |
लोभ
से पनपता है पाप
मनुष्य अपनी परेशानियों का कारण
स्वयं ही है क्योंकि वह सदमार्ग को छोड़कर धन के पीछे भाग रहा है धन का लोभ अनेक
मुसीबते को जन्म देता है | लालच आने पर स्वार्थ कि भावना जागना स्वाभाविक है |
लालची ब्यक्ति कई तरह के पाप कर्मो में फंसकर गलत निर्णय ले लेता है लालच संसार में
ज्ञानी,तपस्वी,शूरवीर,कवी,विद्वान और गुणवान आदि भी उपहास के पात्र बने है इसलिए
मन को सदा नियंत्रण में रखना जरुरी है |
लालच बढता है मोह से
लालच तुरंत लाभ तो दे सकता है
किन्तु अंततः उसका परिणाम बुरा ही होता है | दुसरे का बुरा सोचने वाला स्वयं भी
अपनी गलत सोच का शिकार होता है चल का परिणाम चल के हो रूप में आता है | कहते
है-लालच बढता है मोह से और यही संग्रह-वृत्ति को भी प्रोत्साहन देता है | इसलिए
निजी स्वार्थ छोड़कर हर एक के प्रति शुभ भावना , शुभ कामना व कल्याण कि भावना रखने
में ही स्वयं का भला समाया है |लोभ से पनपता है पाप इसलिए कहावत है, पाप का बाप है
लोभ | लोभ कि नीव में सदा दुसरो के लिए अकल्याण ही होता है इसलिए यह एपीआई समग्रता
यह अपनी समग्रता में अकल्याणकारी परिणाम ही देता है | इस पर एक कहानी इस प्रकार है
–
एक जमीदार था | उसने एक किसान को
अपने खेतो में काम करने के लिए रखा हुआ था और बदले में जमीन का एक छोटा सा टुकड़ा
दे रखा था | किसान ने उस जमींन के टुकड़े में एक बगीचा बना रखा था जिसमे अंगूर कि
बेल लगे हुई थी | उसमे हर साल बड़े मीठे-मीठे अंगूर फलते थे | किसान अत्यंत
परिश्रमी,सत्यवादी और त्यागी था | एक दिन उसने विचार किया कि बगीचा तो में श्रम कि
दें है किन्तु भूमि तो जमीदार कि ही है | अतः इन मीठे अंगूरों में से उन्हें भी
कुछ भाग मिलना चाहिए अन्यथा यह में उनके प्रति अन्याय होगा और मै ईश्वर के सामने
मच दिखने योग्य नहीं रहूँगा
यह सोचकर किसान ने जमीदार के घर कुछ
मीठे अंगूर भिजवा दिए | उधर जमीदार ने सोचा , अंगूर कि बेल मेरी जमींन पर है इसलिए
उस पर मेरा पूर्ण अधिकार है | मै उसे अपने बगीचे में लगा सकता हूँ | लोभ के अंधकार
में जमीदार को सत्क्र्तव्य का भी दयां नहीं रहा | उसने अपने नौकरों को आदेश दिया
कि बेल उखाड़ कर मेरे बगीचे में लगा दो | नौकरों ने मालिक कि आज्ञा का पालन किया |
बेचारा किसान असहाय था वह सिवाय पछताने के क्या कर सकता था नौकरों ने आगया का पालन
किया किन्तु फल देने कि बात तो दूर रही बेल कुछ ही दिनों में सूख | लोभ के कीड़े ने
अंगूर कि बेल को सदा के लिए मिटा दिया |
लालच ऐसी कैंची है जो कभी भी , कही
भी नुकसान करने में पीछे नहीं रहती | इसमें खुद का कोई गेदा ना हो रहा हो लेकिन
दुसरो को नुकसान में डालना लोभी का मासाद बना रहता है | आज के युग में धन के बिना
कुछ नहीं-ऐसा लोग सोचते है | सुनने में चगे अच्छा न लगे लेकिन सच तो यही है कि हर पाप इसी से पैदा होता
है | जब व्यक्ति के मन में लोभ जगता है तो उसके साथ क्रोध भी साइन पर आकर बैठ जाता
है और अहंकार माथे पर चढ़कर बोलता है और यही से जीवन कि चल बिगड़ने लगती है | जिस धन
के लिए मानव इतना पागल हो रहा हिया वह किसी का नहीं है | जिन्हें अपने आप पर
विश्वास है वे आसानी से लालच से बाख सकते है | लोभी व्यक्ति स्वयं पर विश्वास को
छोड़ दुसरो में सुख ढूंढता है |
संयमित
वाणी
कबीरदास ने वर्षो पहले कहा था ,
“वाणी ऐसी बोलिए,मन का आपा खोय,औरन को शीतल करे,आपहू शीतल होय |” भावार्थ यह है कि
बोल-चालया वाणी ऐसी होनी चाहिए जो मन का मै-पण खत्म हो जाये तथा दुसरो के साथ-साथ
खुद भी शीतलता महसूस करे | यह भी कहा जाता है कि ‘तोल-तोल के बोल’ | हर बात सोचने
कि हो सकती है पर हर बात कहने कि नहीं होती अपनी बात को प्रभावशाली ढंग से रखने के
लिए शब्दों को सावधानी से चुने | जीभ हमारी अपनी है ,, इसका इस्तेमाल हम अच्छा
बोलने में करे या बुरा बोलने में, यह चुनाव भी हमारा है | किसी को आप मिसठानभले ही
न किला सके लेकिन आपके मीठे बोल भोजन को को मीठा बना देंगे | इस विषय में एक
छोटी-सी रोचक कहानी याद आती है एक किसान ने अपने पडोसी कि खूब आलोचना कि | बाद में
उसे लगा कि उसने कुछ ज्यादा ही का दिया | उसको पश्चाताप होने लगा | वह पादरी के
पास गया और बोला,मैंने अपने पडोसी को बहुत खरी-खोटी सुना दी , अब उन बातो को कैसे
वापस लूँ? पादरी ने उसे पक्षियों के कुछ पंख दिए और कहा कि इन्हें शहर के चौराहे
पर डालकर आ जाओ जब किसान वापस आया तो पादरी ने कहा, ‘अब जाओ और उन पंखो को इक्कठे
करके वापिस ले औ |’ किसान गया लेकिन चौराहे पर एक भी पंख नहीं मिला, सब हवा में उड़
गए | किसान कहली हाथ लौट आया | पादरी ने कहा जीवन का शाश्वत सत्य यही है कि जैसे
हवा में उड़े पंखो को इक्कठे करना मुश्किल है, वैसे ही कहे हुए शब्दों को वापिस
लेना नामुमकिन है अतः हमेशा सोच- समझकर बात मुहं से निकालनी चाहिए |’
कैसे करे वाणी संयम
हमारी वाणी हमें ऊपर भी उठा सकती है
और निचे भी गिरा सकती है | यश-अपयश दोनों ही हमारी बोल-चल से हमें मिलते है | आचे
विचार मन में लायें, हमारी भाषा में भी उनका असर दिखेगा | परमात्मा कि याद में
रहकर महत्वपूर्ण निर्णय करे | इससे मन में धीरज रहेगा तथा वाणी से मधुर वचन
निकालेंगे | कोई भी बात कहने से पहले खूब विचार- मंथन करके बोलने से गलत या व्यर्थ
वाक्य मुहं से नहीं निकलते | यही जीवन में सुख,शांति भरने कि कला है | यदि कभी कटु
सत्य कहना आवशयक भी हो तो भी शब्दों का उचित चयन करे |
वाणी संयम के लाभ
कहते है, श्रेष्ठ विचारो से सम्पन्न
व्यक्ति कि जीभ पर माँ सरस्वती का निवास होता है | बोलने से ही हमारे व्यक्तित्व
कि परख होती है | कम व जरुरत अनुसार बोलने वाले को ज्ञानी कहा जाता है, अधिक तथा
फिजूल बोलने वाले को मुर्ख कहा जाता है |इसी से हम जग –विख्यात अथवा कुख्यात बन
जाते है | हमारी भाषा सम्बन्धो को निभाने हेतु बेहद महत्वपूर्ण होती है | बोल-चाल
में आत्मीयता व सहजता होती है तो रिश्तो में भी और ताल मेल बना रहता है | किसी के
बारे में इधर उधर कहने कि बजाये उसी व्यक्ति से स्पष्ट रूप से बात करना अच्छा होता
है | तानो, उल्हानो और नसीहतों से रिश्तो में तनाव पैदा हो जाता है | मधुर एवं सधे हुए वचन बोलने से गिरो को भी अपना बना
सकते है | बड़ी से बड़ी भूल होने पर भी प्यार भरे शब्दों में माफ़ी मांगने से सामने
वाला क्षमा कर देता है |
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