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 आप हिम्मत का एक कदम बढाओं तो परमात्मा की सम्पूर्ण मदद आपके साथ होगी !

जिन्हें भगवान खुद याद करते है




जिन्हें भगवान याद करते है वो कौन हो सकता है और वह व्यक्ति कैसा हो सकता है क्या गुण हो सकते है,हमें भी ऐसा बनाना है  आएये जानते है भगवान किसको याद करते है 

वैसे तो परमात्मा को सब लोग याद करते है , कोई थोड़ा कोई ज्यादा लेकिन भगवन किसी को याद करे , वह बड़ी बात होती है | ऐसी ही एक महँ हस्ती थे भ्राता जगदीश जी जिन्हें भगवान् खुद याद करते व मिलने के लिए स्टेज पर बुलाते | हमने कई बार देखा , बापदादा पूछते, कहा है जगदीश बच्चा , उसे बुलाओ | हम कुमारो के लिए तो उदारहण थे वे | जब भी उनके समीप आना हुआ , सदा ही कुछ न कुछ सीखने को मिला | उनके साथ के कुछ अनुभव व घटनाये सर्व के लाभार्थ प्रस्तुत है |

                                         

बात उन दिनों कि है, जब पांडव भवन में दादियो व वरिष्ट भाई- बहनों कि बहुत रिमझिम रहती थी क्योंकि उस समय बापदादा ओम शांति  भवन में बच्चो से मिलन मानाने आते थे | ओमशांति भवन में दादी प्रकाशमणि जी प्रातः मुरली सुना रही होती थी | मुरली के प्रश्न का उत्तर जब वे भ्राता जगदीश जी से पूछती तो भाई साहब खड़े होकर हल्का सिर झुकाकर बड़ी नम्रता से जवाब देते थे | इसी प्रकार, संस्था कि वार्षिक मीटिंग के दौरान उनकी दी गई सही राय में यदि दादियाँ कोई करेक्शन करती थी तो वे नम्रतापूर्वक तुरंत स्वीकार कर लेते थे | तब भी उनका सर हल्का –सा झुका हुआ ही रहता था | मुझे उनका वह स्वरूप बहुत ही प्रेरणा देता था व आज भी देता है | अव्यक्त बापदादा से मिलन के समय भी बापदादा के सम्मुख सिर झुकाए हुए ही खड़े रहते थे | इस प्रकार हमने देहा कि बाबा, मुरली व वरिष्ठ दादियाँ के प्रति उनका बहुत ही सम्मान था | मुरली सुनते समय व अन्य अवसरों पर भी मै सदा उनके आस-पास रहने का प्रयास करता था तथा उनकी गतिविधियों को सूक्ष्मता से देख उनसे सीखता था |

                                      

सन 1955 में ज्ञानसरोवर में नवनिर्मित बाबा के कमरे का उद्घाटन करने के लिए तमिलनाडु के राज्यपाल भ्राता एम.चेन्नारेड्डीजी आए हुए थे व उन्हें बापदादा से भी मिलना था एम चेन्नारेड्डी के साथ सभी वरिष्ठ दादियाँ व वरिष्ठ भाई बाबा के कमरे कि तरफ गए लेकिन जगदीश भाई जी थोड़ा पीछे थे | वे पैदल चलते हुए बाबा के कमरे  के विपरीत, ट्रेनिंग सेन्टर कि तरफ जाने वाली सड़क के किनारे के एक पेड़ के निचे बैठ गए | मै भी उनकी तरफ ही मुड़ गया क्योंकि उनके पीछे-पीछे मै भी आ रहा था | मैंने महसूस किया कि इतने बड़े समारोह व वी. आई. पी. के आने का इनको किओइ आकर्षण नहीं , जैसे उपराम है, बाबा के आसबैठे है कोई आकांक्षा नहीं | लेकिन अगले दिन जब भ्राता एम.चेन्नारेड्डी के सम्मान समारोह में एक वक्ता के रूप में उपस्थित थे तो उन्होंने उनकी तीन विशेषताए ऐसी सुने कि बहुत देर तक हाल तालियों कि गडगडाहट  से गूंजता रहा |

                                      

अपने अंतिम दिनों में जब वे अस्वस्थ थे , उन्हें हास्पिटल से लाकर सुखधाम भवन के एक कमरे में रखा गया था क्योंकि उनकी अंतिम इच्छा थी कि उनका अंतिम श्वास बाबा कि तपोभूमि मधुबन में ही छुटे | सन 2001 कि एक घटना है, तब बापदादा कि पधरामणी शांतिवन में शुरू हो चुकी थी | उस समय सेवा का टार्न हमारे जोने का था , हम लोग सेवार्थ मधुबन गए हुए थे जोने कि तरफ से सभी वरिष्ठ भाइयो व बहनों के लिए सौगाते लाई गई थी | भाई साहब कि तबियत को देखते हुए जोने कि वरिष्ठ बहने उनसे मिलने सुखधाम भवन पहुंची और उन्हें सोने का एक बैज सौगात में देने लगी | जगदीश भाई साहब ने बड़ी नम्रता से उसे अस्वीकारकरते हुए कहा , मै गरीब निवाज बाप का गरीब बच्चा हूँ, मै इसे स्वीकार नहीं कर सकता , मुझे क्षमा करे | इतनी सादगी, इतनी नम्रता, इतना बाबा से प्यार ! इस घटना कि खबर जैसे ही जोन को मिली, सबको बहुत ही प्रेरणा मिली तथा ऐसी रचना रचने वाले बाप पर बहुत प्यार आया | शांतिवन में उनके रहने के लिए सर्वसुविधायुक्त कमरा कमरे में ही रहे , कभी वह नहीं रुके | उनकी इन्ही विशेषताओ के कारण उन्हें संजय, गणेश, दधीचि, इत्यादि टाइटल मिले थे | वे साकार बाबा व मम्मा कि विशेषताओ कि फोटोकापी थे | आज भी उनके साथ कि घटनाओ को याद करके बहुत प्रेरणा मिलती है व वैसा बनने कि लगन लगी रहती है

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