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 आप हिम्मत का एक कदम बढाओं तो परमात्मा की सम्पूर्ण मदद आपके साथ होगी !

ऐसे करे इर्ष्या का उन्मूलन



      इर्ष्या करने से इर्ष्या घटती नहीं है, इर्ष्या बढती है !
     इर्ष्या समाप्त होती है तो सिर्फ परमात्मा कि याद से |
ईश्वरीय याद में रहो और खुश रहो. यही परमात्मा का सन्देश है            
             ऐसे करे इर्ष्या का उन्मूलन 

              विश्व नाटक कि यथार्थ समझ स्मृति में रखे 

यह स्रष्टिका नाटक अनादि-अविनाशी है बना बनाया है , इसकी निश्चित अवधि है, यह हुबहू पुनरावृत होता इसमें सबका अपना अपना पार्ट (अभिनय) निश्चित है | इसमें कोई फेर बदल नहीं किया जा सकता | इसमें
तुलना कि कोई सम्भावना ही नहीं है | सबका अपना अपना पुरुषार्थ व भाग्य है | सबकी अपनी अपनी विशेषताए है | सबका पार्ट बजने का अपना अपना समय है हमारे इर्ष्या करने से किसी के निश्चित हुए पार्ट को बदला नहीं जा सकता | जो जैसा जैसा है या जिसका जो कुछ है या होगा , वह अविनाशी नाटक के अनुसार निश्चित है | इर्ष्या करके हम किसी को कितना ही अवनत करना चाहे लेकिन यदि व्यक्ति कि उन्नति निश्चित है तो फिर इर्ष्या निरर्थक है ईर्ष्यालु ब्यक्ति नाहक अपना वक्त और उर्जा खर्च करता है इर्ष्या करने वाला अपने ही अज्ञान प्रकट करता हिया और अपनी ही हनी करता है वह अपनी उन्नति कि और ध्यान न देकर दुसरो कि अवनति कि और ध्यान देता है परिणामस्वरूप अपनी मुर्खता ही दर्शता है | वे आत्माएं जिनमे आत्म-विश्वास कि शक्ति है उनमे किसी भी हालत में हीनता कि ग्रंथि पैदा नहीं हो सकती |
                
                 ईश्वरीय मिलन का अनुभव 

ज्ञानवान आत्माए यह स्वीकार कर लेती है कि हम आत्माओ कि आदि- अनादि स्थिति माननीय व पूज्यनीय है | अब फिर से उसी स्थिति में लौटने का समय आ चूका है |वे जानती है कि सर्व शक्तियों और गुनु से सम्पन्न  आत्माएं हम ही थी और हमें ही पुनः बनाना है ज्ञानवान आत्माए अन्तर्मुखी वृति वाली होती है इसलिए उनमे इर्ष्या कि भावना पैदा नहीं हो सकती | “A regular practice of introspection is the only remedy to conquer the vice of Jealousy.” वे आंतरिक आनंद के अनुभव में रहती है | यूग अभ्यास में ईश्वरीय मिलन का अनुभव करने से मन में सबके लिए शुभ कामना को भरपूर अनुभव करने वाली आत्माएं इर्ष्या से कोसो दूर रह सकती है | आंतरिक वैभव के अनुभवी बनने से इर्ष्या का उन्मूलन अवश्य हो सकता है  


  • इमानदार होने का अर्थ है, हजार मनको में अलग चमकने वाला हीरा 
  • जब तक मन में पाप है , तब तक पूजा-पाठ ब्यर्थ है 

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