मुस्कराहट
खुशियों की चमकती धुप, लबो की कायनात है |
प्यारी-सी मुस्कुराहट जिन्दगी की, बड़ी
हसीं सौगात है ||
मुस्कुराहट एक आशा है, विश्वासों की भाषा
है |
उम्मीदों के दामन से, करती दूर निराशा है
||
मिट जाती है दूरियां, बन जाती हर बात है |
खुशियों की चमकती धुप, लबो की कायनात है
||
मुस्कुराहट एक जादू- सी, सबको मित्र बना
देती |
स्नेह के पुष्प खिल जाती, वैरभाव मिटा
देती ||
मुश्किलें सहज हल हो जाती, करती ये करामात
है |
खुशियों की चमकती धुप, लबो की कायनात है
||
अहसास इसका बड़ा सुखद, सबको है ये अपनाती |
मुस्कुराहट सहज दिलो में, रहम भाव लेकर
आती ||
पावन रूप सदा इसका, मिलता प्रभु का साथ है
|
खुशियों की चमकती धुप, लबो की कायनात है
||
जिन्दगी एक मुस्कुराहट, मुस्कुराहट बनकर
जियो |
मुस्कान एक अमृत की धरा, हर एक पल अमृत
पियो |
ये खुदा की है खुदाई, विघ्नों को देती मात
है |
खुशियों की चमकती धुप, लबो की कायनात है
||
पास जिसके मुस्कुराहट, सच्चा दौलतमंद है |
बांटता जाता सभी को, सबको जो पसंद है ||
इसकी सह में है अमीरी, रोशन ये हयात है |
खुशियों की चमकती धुप, लबो की कायनात है
||
कुछ ऐसा कर जाऊ
है चाहत मेरी अब तो बाबा,
मै कुछ ऐसा कर जाऊ |
सदा रहे मुस्कान बनी ये ,
ऐसा वर मै पा जाऊ ||
प्रत्यक्ष करूँ मै आपको बाबा
चहुँ दिशा चहुँ ओर |
और धरा पर उतार लाऊ
फिर से स्वर्णिम भोर ||
है चाहत मेरी .................
रह ना जाये कोई कोना
जहाँ हो दुःख का शोर |
मिले ज़माने कि खुशिया सब
जाच उठे मन मोर ||
है चाहत मेरी ..............
हो साक्षीद्रष्टा,बन कर्मयोगी
स्व-परिवर्तन मै कर पाऊ |
देवत्व खुद में जगाकर
तपस्वीमूर्त मै बन जाऊं ||
है चाहत मेरी..................
सरस्वती जगदम्बा माँ
मुरलीधर कि दीवानी और
मस्तानी थी आप
विद्या कि देवी होते भी,
विद्यार्थिनी थी आप
ज्ञान बूंद कि अनुरागी ,
चटक सामान थी आप
सरस्वती जगदम्बा माँ, सच्ची
गोपी थी आप
आपकी नजरो में समाया रहता
था शिव बाप
हुकमी हुक्म चला रहा है ,
ये कहती थी आप
ज्ञान, यूग और धारणा कि
साक्षात् मूर्त थी आप
सरस्वती जगदम्बा मै, सच्ची गोपी
थी आप
संसार से उपराम थी, दिव्या
पारी थी आप
गुण रत्नों से सजी हुई,
शक्ति रत्न थी आप
करुना स्वरूप और क्षमापूर्ण
थी, प्रेममई थी आप
सरस्वती जगदम्बा माँ, सच्ची
गोपी थी आप
पवित्रता कि जननी थी ,
साक्षात् सरस्वती आप
बाप सामान निरहंकारी थी,
विश्व वन्दनीय आप
ब्रम्हा बाप के पदचिन्हों
पर, चलने वाली आप
सरस्वती जगदम्बा माँ,सच्ची गोपी
थी आप
अंगूरों कि बेल दिलाती ,
याद आपकी आज
24 जून 1965 अव्यक्त हो गई
आप
सम्पूर्णता को धारण कर,
यादगार बन गई आप
सरस्वती जगदम्बा माँ,सच्ची गोपी थी आप
नशा-नाश का पैगाम
नशा
नाश का रूप है, करता सुख से दूर |
समर्थ
जीवन को करे, पग-पग पर मजबूर ||
पग-पग
पर मजबूर, काम है सभी अटकते |
बीबी-बच्चे
अनाथ बनकर सदा भटकते ||
जीवन की
बजी में उसकी हार हो गई |
जिसे
नशे कि लत, उसकी तक़दीर सो गई ||
मादक
द्रव्यो से किया जिस मानव ने प्यार |
जीवन
में रोता रहा, बिगड़ गया संसार ||
बिगड़
गया संसार, दुखो ने डाला डेरा |
मृत्यु
से पहले मृत्यु ने उसको घेरा ||
खिला
हुआ गुलशन उसका बर्बाद हो गया |
जीवन
में ही जीवन मुर्दाबाद हो गया ||
सूरा
और स्मैक है दोनों विष के नाम |
हसंते
जीवन के लिए मृत्यु का पैगाम ||
मृत्यु
का पैगाम सदा उदास करेंगे |
मन कि
सुख –शान्ति का सत्यानाश करेंगे ||
इसी
नसे से जीवन में अपराध पनपते |
तनाव
बढ़ता,बने हुए परिवार बिगड़ते ||
प्रभु-प्रेम
के नसे से कर अपना कल्याण |
नर्क
बने घर को बना, फिर से स्वर्ग सामान ||
फिर
से स्वर्ग सामान, मिटा जीव अँधियारा |
प्रेम
और सुख-शान्ति का फैला उजियारा ||
आज
बना,बिगड़े जीवन कि नई कहानी |
आज
प्राप्त कर नई जवानी नई रवानी ||
2
मै बाबा का बच्चा हूँ
मै बाबा का बच्चा
हूँ,सदा रहे ये ध्यान मुझे,
बाबा कैसे बना रहे
है,अपने ही सामान मुझे,
बाबा , बाबा मधुर
ध्वनि कानो में रस घोलते है,
उर में है आनंद
समता,जिह कुछ न बोलती है |
बाबा संग खेलूं-खाऊं
सदा वो रहते साथ मेरे ,
जब भी उनको याद करूँ
तो हाथ में देते हाथ मेरे
प्यार से मीठे बच्चे
कहकर ऐसे नशा चढ़ातेहै ,
ह्रदय से ऐसा प्यार
लुटाकर अपना मुझे बनाते है |
जब से मुझको शिव
बाबा कि मम्मा से पहचान मिली
रोग –दोष सब दूर हुए
है , एक अनोखी शान मिली |
मै तो हूँ एक अमर आत्मा
और अजर,अविनाशी ,
कई जन्मो से बिछुड़ी
हुई हूँ, प्रभु प्रेम कि प्यासी |
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