कर्ज और मर्ज इ स संसार में हर व्यक्ति अपने फर्ज कर्तव्य से बंधा है | फर्ज पूरा करके हरेक ख़ुशी महसूस करता है जैसे पिता का फर्ज है फ़रह है तो बच्चो कि पालना करना इसके लिए वह धन और साधन खुशी- खुशी अर्जित करता है ऐसे ही एक माता का फर्ज है कि वह बच्चो को खिलाये पिलाये ओढ़ाय- पहनाये संभाले – वह भी इस कार्य को करते हुई इस प्रकार हम देखते है कि कि फर्ज कोई लादी हुई चीज नहीं बल्कि ख़ुशी से स्वीकार कि गई , स्वाभाविक जिम्मेवारी है | मर्ज का अर्थ है रोग | रोग तो मानव का सुकून छीन लेता है भी खर्च होता है, मन चिंतित रहता है और तन भी कमजोर हो जाता है फिर ऐसे चिंतित बोझिल व्यक्ति का सामाजिक पारिवारिक मान सम्मान भी काम हो जाता है | मोह बनाता है फर्ज को मर्ज वर्तमान समय हम देखते है कि कई लोगो का फर्ज मर्ज में बदल जाता है | वे फर्ज अदा करते ऐसे महसूस करते है मानो कोई मर्ज लगा बैठे है जिसे जबरदस्ती भोगना पड़ रहा है गहरे से विचार करने पर हमारे सामने यही...