ईश्वरीय प्रेम का अनोखा रस शारीरिक, लौकिक अथवा नस्वर सम्बन्धो का रस तो हमने जन्म जन्मान्तर लिया है परन्तु परमात्मा का सम्बोधन करते हुए हम गाते आये है कि हे प्रभु, आप ही हमरे मात-पिता, सखा स्वामी, विद्याप्रदाता और हमारे सर्वस्व (त्वमेव माता च पिता त्वमेव) हो क्या उन सम्बन्धो का अनुभव हमने किया है? जो ऐसे गायन-योग्य , मधुर सम्बन्ध है उनका हम अनुभव ही न करे यह तो गफलत और अल्बेलेपन का सूचक है | जिस प्रभु को प्यार का सागर कहा जाता है, उनको अनोखे प्यार का रस ही जिसने न लिया हो वह कितना भाग्यहीन है | उन जैसा साचा प्यार जिसमे सभी संबंधो कि रसना भरी हुई हो, कोई दे ही नहीं सकता तब यदि वह प्यार हमने न पाया तो क्या पाया? मुझे अनुभव है कि जब हम किसी ऐसे बच्चे से बात करते है जिसकी माता या पिता का साया उसके सर से उठ गया हो तो माता या पिता के बारे म...